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प्रथम अधिकार। कमलोंके दर्शन कर बहुत ही प्रसन्न होते थे ॥३७॥ वहांके धर्मात्मा पुरुष मांगनेवालोंके लिये उनकी इच्छासे भी अधिक दान देते थे और इसप्रकार चिरकालसे धनका संग्रह करनेवाले कुबेरको भी लज्जित करते थे ॥ ३८ ॥ वहांके तरुण पुरुष अपनी अपनी स्त्रियोंको सुख पहुंचा रहे थे और वे स्त्रियां भी अपने हाव, भाव, विलास आदिके द्वारा देवांगना
ओंको भी लज्जित कर रही थीं ॥३९॥ उस नगरके घरोंकी पंक्तियां बड़ी ही ऊंची थीं, बड़ी ही सुंदर थीं और बहुत ही अच्छी जान पडती थीं तथा वे अपनी सफेदीकी मुंदर शोभासे चंद्रमंडलको भी हंस रही थीं ॥४०॥ वहांके बाजारोंकी पंक्तियां बहुत ही सुंदर थीं, उनकी दीवाले मणियोंसे मुशोभित थीं और सोना, वस्त्र, धान्य आदि अनेक पदार्थोका लेन देन उनमें हो रहा था ॥ ४१ ॥ उस नगरमें श्रेणिक नामके राजा राज्य करते थे। उनका हृदय सम्यग्दर्शनसे अत्यंत दृढ़ था और नमस्कार करते हुए समस्त सामंतों के मुकुटसे उनके चरणकमल ददीप्यमान हो रहे थे ॥ ४२ ॥ हृष्टचेतसः ॥ ३७ ॥ धर्मिष्ठा यत्र सद्दानं ददतेऽर्थीच्छयाधिकम् । लज्जयंत इव श्रीदं चिरसंचितवित्तकम् ॥ ३८ ॥ तरुणा यत्र कुर्वति कामिनी सुखसंगताम् । हावभावविलासाद्यैस्ताडितामरसुन्दरीम् ॥३९॥ गृहाली रानते यत्र प्रोत्तुंगा सुन्दराकृतिः । चंद्रबिंब हसंतीव श्वेतसुधांसुशोभया ॥ ४० ॥ यहट्टराजयो भांति मणिरंजितभित्तयः । सुवर्णवस्त्रधान्यादिक्रियाणकप्रमंडिताः ॥४१॥ नमिताशेषसामंतमुकुटदीपितपत्कजः । भूपोऽभूच्छ्रेणिकस्तत्र सम्यक्त्वदृढचित्तकः ॥४२॥