Book Title: Dhanya Shalibhadra Mahakavyam
Author(s): Purnabhadra Gani
Publisher: Jindattasuri Gyanbhandar
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धन्यशाली भद्र -
॥ १९ ॥
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पुण्यैरहमिहायात -- स्वदीयैरेव साम्प्रतम् । तुभ्यं प्रदत्तमेवैनं, भद्रादत्स्व त्वमेव हि ॥ १९ ॥ ततस्तं निधिमादाया - विज्ञातोऽन्यैर्जनैर्मुदा । सधन्यः सप्रियञ्चापि निजं धाम जगाम सः ॥२०॥ धन्यस्य सम्पर्कमवाप्य तत्र, कृषीवलोऽभूदितरेभ्य आढ्यः । चिन्तामणेर्योग इहाङ्गभाजां दारिद्र्यमुद्राम्प्रणिहन्ति किं न ॥ २१ ॥
॥ इति श्री धन्यशालिभद्रमहर्षिचरिते धन्यपूर्वभव सुप्रतिष्ठपुरनिर्गमन कृषीवलगृहावस्थानवर्णनो नाम प्रथमः परिच्छेदः ॥ १ ॥
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महाकाव्यम् सर्गः १
॥ १९ ॥

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