Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान : अमृतमयी परंपरा
(१) अनुकंपादान : इस दान का मुख्य आधार अनुकंपा है। एक मानव द्वारा दूसरे मानव का दुःख देखकर दिया जानेवाला दान, यह दान का मुख्य अंग है । इस दान में पीडित, दुःखी, दीन, दरिद्र जीवों को देखकर किसी भी प्रकार से उनकी मदद करने का भाव होता है । उनका दुःख दूर करने की तीव्र उत्कंठा जागती है उसको अनुकंपा दान कहा जाता है । अनुकंपा दान यह मानवता का दर्शनरूप है | जिसके द्वारा मानव की मानवता और सम्यक्त्व का नाप निकलता है ।
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(२) आहारदान अथवा अन्नदान : आहारदान का महत्त्व विशेष है । आहार भोजन यह सभी के लिए जीवन टिकाने के लिए प्राथमिक जरूरत है । व्रतधारी त्यागी, मुनियों वगैरह का आधार गृहस्थ पर है । इसलिए गृहस्थ के लिए आहारदान एक श्रेष्ठ दान है। आहार के बिना किसी भी मनुष्य या पशु का जीवन टिकाए रखना असंभव है । इसलिए हर एक के लिए आहार एक प्रमुख वस्तु है । इसी कारण से अन्न का सदाव्रत चलानेवाला भूखे मनुष्य का हार्दिक आशीर्वाद प्राप्त करके महान पुण्य उपार्जित करता है । इस बाबत में जैन बहुत आगे हैं । जैनों के तीर्थ स्थलों में भोजनशालाओं तथा भाता देने की व्यवस्था होती है।
(३) ज्ञानदान : मनुष्य के भौतिक शरीर की रक्षा के लिए खुराक की जितनी आवश्यकता है उतनी ही जरूरत उसके चैतन्य शरीर की रक्षा और पोषण के तथा उन्नति के लिए है । वह रक्षा ज्ञान द्वारा होती है। ज्ञान का दूसरा नाम 'आध्यात्मिक औषधि' दे सकते हैं और इस आध्यात्मिक औषधि के बिना चैतन्य शरीर की रक्षा करना असंभव है । ज्ञानदान का स्थान सबसे श्रेष्ठदान की तरह गिना जाता है, कारण कि मोह का नाश ज्ञान के बिना संभव नहीं है । ज्ञान यह एक ऐसी विशेष प्रकार की शक्ति है जिसके प्रभाव से क्लेश, कषाय, दुःख, राग, मोह वगैरह का नाश होता है। ज्ञान के लिए कहा जाता है कि ज्ञान एक दीपक है जो सब को प्रकाश देता है। ज्ञान एक शक्ति है। ज्ञान प्राप्त करना और देना यानी अज्ञानी को प्रकाश देना, सच्चा मार्ग बताना, उसका आत्मिक बल, नैतिक बल बढ़ाना । विद्यार्थिओं को अभ्यास के लिए दान देना, उसको आर्थिक तथा नैतिक सहायता करनी यह अत्यन्त महत्त्व का ज्ञानदान कह सकते हैं ।
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