Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान का महत्त्व और उद्देश्य
२३ .
द्वितीय अध्याय
दान का महत्त्व और उद्देश्य
दान का महत्त्व अत्यन्त है। केवल दान की भावना और दान करने से इस संसार सागर को पार कर गये हो ऐसी कई घटनाएँ हैं । ईश्वर तक पहुँचने की प्रत्येक धर्म की परंपरा और पद्धति चाहे भिन्न हो परन्तु प्रत्येक धर्म में दो समानताएँ देखने में आती है। एक ईश्वर को याद करने के लिए पूजा स्थल, देहरासर, मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, मठ, चर्च वगैरह । इसी तरह प्रत्येक धर्म की पूजा पद्धति अलग हो सकती है। परन्तु प्रत्येक धर्म ने दान का महत्त्व स्वीकार किया है और दान को महत्त्व प्रदान किया है। दान इस संसार के अंदर धर्ममयी होने के लिए सबसे सरल, श्रेष्ठ और पहला कदम है। __ व्यापार के विषय में अनभिज्ञ एक श्रेष्ठीपुत्र; अपने पिता से आग्रह करके पिता की अनुमति लेकर अपने मुनीम के साथ परदेश पहुँचा । पिता ने उसे परदेश भेजा तो था माल खरीद कर शीघ्र ही वापस लौटने के लिए; किन्तु वह बड़े शहरों की चकाचौंध तथा आमोद-प्रमोद के साधनों में इतना मुग्ध हो गया कि उसे पता ही नहीं चला कि किस प्रकार एक के बाद एक दिन बीतते चले गये ? उसे यह भान ही नहीं रहा कि मैं यहाँ किसलिए आया था ? मुझे पिताजी ने किस कार्य के लिए भेजा था? मुझे क्या करना चाहिए? कार्यसिद्धि के लिए कहाँ कहाँ जाना चाहिए?
आखिर एक महिना बीतते ही उसके पिता का तार आया- 'जल्दी लौट आओ ।'
सेठ का लड़का बहुत पछताया, पर अब क्या हो सकता था । माल