Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
View full book text
________________
दान से लाभ
आवश्यक भाष्य भी इसी बात को स्पष्ट करता
है
-
"दाणऽन्नपंथनयणं, अणुकंप गुरुण कहण सम्मत्तं ।"
धन्ना सार्थवाह ने मुनिवर को दान दिया, उन्हें सही मार्ग पर ले गया। गुरुदेव ने अनुकम्पा लाकर उन्हें उपदेश दिया, जिससे सम्यक्त्व की प्राप्ति
हुई ।
-
दान मोक्ष का द्वारपाल है । मोक्ष का प्रथम द्वार सम्यक्त्व है और सम्यक्त्व को प्राप्त कराना दानरूपी द्वारपाल के हाथ में है । मनुष्य अगर महापुरुष बनना चाहता है तो किसी महापुरुष साधुसन्त को दान देना अत्यन्त आवश्यक है । शास्त्र में बताया है
-
"मुनिवरों के दर्शनमात्र से दिन में किया हुआ पाप नष्ट होता है, तो फिर जो उन्हें दान देता है, उससे जगत् में कौन-सी ऐसी वस्तु है, जो प्राप्त न हो, यहाँ तक कि सम्यक्त्व की उपलब्धि भी दान के निमित्त से प्राप्त होती है । १
पद्मनन्दिपंचविंशति में इस सम्बन्ध में स्पष्ट संकेत किया है
१०१
१. दंसणमित्तेण वि मुणिवराणं नासेइ दिणकयं पावं । जो देई ताण दाणं तेण जए किं न सुविदत्त ||
-
२. प्रायः कृतो गृहगते परमात्म- बोधः,
-
- "जगत् में जिस आत्मस्वरूप के ज्ञान से शुद्ध आत्मा के पुरुषार्थ की सिद्धि होती है, वह आत्मा (परमात्मा) का बोध (ज्ञान) गृह में स्थित मनुष्यों को अक्सर कहाँ प्राप्त हो सकता है ? अर्थात् नहीं हो सकता । किन्तु चार प्रकार के दान से तथा पात्र के आनुषंगिक फल रूप वह आत्म - बोध (सम्यक्त्व) सहज रूप से ही प्राप्त हो जाता है । २
शुद्धात्मनो भुवि यतः पुरुषार्थसिद्धिः । दानात्पुर्नननु चतुर्विधतः करस्था, सा लीलयैव कृतपात्रजनानुषंगात् ॥
1
-
दान ही एक ऐसा चमत्कारिक गुण है, जिसके प्रभाव से आकृष्ट होकर सभी सौख्यसामग्री मनुष्य के पास आ जाती है । रयणसार नामक ग्रन्थ में पात्रदान का फल बताते हुए कहा है.
प. पं. २/१५
अभिधान राजेन्द्रकोष, गा. १०३