Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 326
________________ दान की निष्फलता के कारण व भाव दान का स्वरूप २८७ बहुत दिनों से सुन रखा था। परन्तु गया और सारनाथ जाकर दर्शन करने की उसके पास शक्ति और सुविधा नहीं थी। अब जब सुना कि तथागत अपने शिष्यों के साथ उसके नगर में आ रहे हैं, तो हर्षविभोर हो गई। उसने सुना था कि बौद्ध भिक्षु नंगे पैर चलते हैं, उनके पैरों में काटे चुभ जाते हैं। वह प्रतिदिन राजमार्ग में झाडू देती थी और काटे चुगती थी। राह चलते हुए बच्चे उसे छेड़ते और उसे पागल समझते थे । पर उसे इन बातों की कोई परवाह ही नहीं थी। बुद्ध अपने शिष्यों सहित भिक्षा के लिए नगर में पधारे । लोगों में होड़ लगी हुई थी कि ज्यादा से ज्यादा स्वादिष्ट भोजन दिया जाय । बेचारी वृद्धा थकी हुई एक ओर खड़ी ताक रही थी। उसके पास एक ही रोटी बची थी। दूसरे लोगों की नाना प्रकार की मिठाइयों को देखकर उसे अपनी सूखी रोटी देते हुए लज्जा हो रही थी। तथागत ने उसे भीड़ में खड़ी हुई देखा । पास में जाकर कहा - "माई ! भिक्षा दे दो।" बड़े प्रेम से गदगद होकर उस वृद्धा ने पूरी रोटी इनकी झोली में डाल दी। उसने सोचा कि नाना प्रकार के व्यजंनों के रहते मेरी इस रोटी को कौन पूछेगा? फिर भी उसका मन नहीं माना और जब. तथागत बुद्ध अपने शिष्यों सहित एक वृक्ष के नीचे बैठकर आहार करने की तैयारी करने लगे तो वह एक तरफ खड़ी ताकने लगी। दूसरे शिष्यों को अन्य सामग्री बाँटने के बाद तथागत ने स्वयं उस वृद्धा की रोटी से पारणा किया । यह देखकर उस गरीब वृद्धा की आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। सोचा-आज मेरा जीवन धन्य और सार्थक हो गया। ___. वस्तुतः दान का महत्त्व और मूल्य भावना में निहित होता है । कौन, कितनी और कैसी वस्तु देता है, इसका महत्त्व नहीं; महत्त्व है वस्तु देने के पीछे व्यक्ति की श्रद्धा-भक्ति और हृदय की अर्पण भावना का । इसी कारण तुच्छ वस्तु का दान भी श्रद्धा-भावना के कारण महामूल्यवान हो जाता है और इतिहास के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों में अंकित एवं प्रसिद्ध हो जाता है। ईसाई धर्म की पुस्तकों में दरिद्रता में दिये गये दान की महिमा गायी गई है। एक जैनाचार्य भी कहते हैं - "दाणं दरिद्दस्स पहुस्स खंती ।" - दरिद्र द्वारा दिया गया दान और समर्थ द्वारा की गई क्षमा महत्त्वपूर्ण है।

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