Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 334
________________ दानमहिमागर्भितं श्री दान कुलकम् २९५ १८. छ मासी तपवाले घोर तपस्वी श्री वीरप्रभु को जिन्होंने उड़द के बाकुला का दान देकर संतुष्ट किया, वह चंदनबाला प्रशंसा क्यों नहीं प्राप्त करे ? ॥१८॥ १९. अरिहंत भगवंतों ने जिनके घर प्रथम वगैरह ( तप के) पारणा किया है, करते हैं, और करेंगे उन आत्माओं की सिद्धि (मोक्ष) अवश्य होती है ॥१९॥ २०. आश्चर्य है कि जिनमंदिर, जिनबिंब, आगम और साधु-साध्वी - श्रावकश्राविका रूप चतुर्विध संघ - इन सात क्षेत्रों में बोया हुआ धन अनंतगुणयुक्त मोक्षफल को प्रदान करने वाला है ||२०||

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