Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान की निष्फलता के कारण व भाव दान का स्वरूप
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बताया और उसकी जोड़ी का बैल राजा से चाहा । आखिर उसकी माँग की पूर्ति न हो सकी ।
राजा श्रेणिक ने भगवान महावीर से मम्मण सेठ की ऐसी वृत्ति का कारण पूछा तो उन्होंने उसकी पूर्वजन्म की घटना सुनाई - " मम्मण सेठ पूर्वजन्म में बहुत गरीब था । एक बार बिरादरी में भोज हुआ, उसमें लड्डू दिये गये । इसने अपने हिस्से का लड्डू रख लिया। सोचा - "भूख लगेगी, तब खाऊँगा ।" जब वह गाँव के बाहर आकर एक तालाब के किनारे उस लड्डू को खाने बैठा, तभी उसे एक मासोपवास की तपस्या वाले साधु आते दिखाई दिये । इसके जी में आया – “आज अच्छा मौका मिल गया है, साधु को आहार दान दूँ ।" यह सोचकर उसने मुनि को आहार लेने के लिए अत्यधिक आग्रह किया। मुनि ने कहा "तुम्हारी इच्छा है तो इसमें से थोड़ा-सा दे दो ।" किन्तु उसकी भावना उस समय इतनी उत्कृष्ट थी कि मुनि के अत्यधिक मना करने पर भी वह सारा लड्डू -मुनि को दे दिया। मुनि लेकर चल दिये, उसके घर के पास में एक व्यक्ति रहता था जिसके मन में साधुओं के प्रति घृणा थी उसने पास आकर कहा कि आज तुम्हारे यहाँ पर साधु आया था तुमने उसे क्या दिया ?
उसने उसका प्रतिवाद करते हुए कहा " तपस्वी संत भगवंत को तुच्छ शब्दों से पुकारना उचित नहीं है। मेरे पास है भी क्या, जो मैं उन्हें देता । आज मेरे सद्भाग्य थे कि लहानी का लड्डू आया था और इधर तपस्वी संत भगवंत पधार गये, मुझे सहज रूप से लाभ मिल गया ।" उसने कहा- "जरा तुमने लड्डू चखा भी है या नहीं, इतना बढ़िया लड्डू तो मैंने अपने जीवन में पहली बार देखा,क्या उसका स्वाद है।" उसके कहने से उसने थाली में पड़े लड्डू के कणों को खाया। वे लड्डू के कण बड़े स्वादिष्ट थे । लड्डू की उस मिठास ने मुनि को दान के उसके रस को बिगाड़ दिया । उसके हर्ष को विषाद में परिणत कर दिया । वह सोचने लगा- "कहाँ से आ गये ये ? इन्हें भी आज ही आना था ।
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यह तो संत हैं, इन्हें तो रोज-रोज ही लड्डू मिल सकते हैं, मुझे कौन-से रोज मिलते हैं। आज तक तो मेरे यहाँ आये नहीं और आये तो आज ही आए । मैंने व्यर्थ ही इन्हें लड्डू दे दिया।" इस प्रकार लड्डू देने के लिए वह पश्चात्ताप करने लगा । उसी पश्चाताप का परिणाम है कि आज इसके पास ९९ करोड़ की सम्पत्ति होते