Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान : अमृतमयी परंपरा
कल्पनीय और आहार-पानी आदि के लिए आवश्यकतानुसार काष्ट आदि के
पात्र देना ।
आवश्यकचूर्णि में भी दान के १० भेद बताए गए हैं। वे इस प्रकार
(१) यथाप्रवृत्तदान, (२) अन्नदान, (३) पात्रदान, (४) वस्त्रदान, (५) औषधदान, (६) भैषज्यदान, (७) पीठदान, (८) फलकदान (९) शय्यादान, और (१०) संस्तारकदान ।
इसके अतिरिक्त आवश्यकसूत्र, उपासकदशांगसूत्र', सूत्रकृतसूत्र भगवतीसूत्र आदि में दान के उत्तम पात्रों को देने की दृष्टि से १४ भेद बताये हैं
.
(१) अशन, (२) पान, (३) खादिम, (४) स्वादिम, (५) वस्त्र, (६) पात्र, (७) कम्बल, (८) पादप्रोंछन, (९) पीठ, (१०) फलक, (११) शय्या, (१२) संस्तारक, (१३) औषध और (१४) भैषज्य ।
ये १४ प्रकार की धर्मपालन के लिए आवश्यक कल्पनीय, उचित निर्दोष एषणीय वस्तु साधु-साध्वियों को देना दान है ।
इन सब पूर्वोक्त दानों के अतिरिक्त कुछ दान और हैं, जिनका उल्लेख विविध धर्मग्रन्थों में मिलता है
क्षायिकदान :
दिगम्बर जैन ग्रन्थों में क्षायिकदान की चर्चा आती है । क्षायिकदान वास्तव में दानान्तराय आदि के अत्यन्त क्षय होने से होता है और दानान्तराय आदि का सर्वथा क्षय अर्हन्तों और वीतरागों - केवलज्ञानियों के ही होता है, जो १२वें, १३वें गुणस्थान पर पहुँच जाते हैं । परन्तु एक सवाल उठता है कि ऐसे उच्च गुणस्थानवर्ती महापुरुष तो यथाख्यातचारित्री, क्षीणमोहनीय या सयोगीकेवली होते हैं, उनके पास उस समय देने को क्या होता है ? न तो वे धन दे सकते हैं, न अन्न ही और न अन्य कोई वस्तु ही दे सकते हैं । तब वे दान किस बात का
१.
उपासक १/५८
२. सूत्रकृतांग २ / २ / ३९
३.
भगवती २/५