Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान की विशेषता
२५३ - झूठ से यज्ञ नष्ट हो जाता है, तपस्या विस्मय से नष्ट हो जाती है, ब्राह्मण एवं साधु आदि की निन्दा करने से आयु घट जाती है और दान का जगह-जगह बखान करने से व कहने से वह निष्फल हो जाता है।
___ दान देकर उसका प्रदर्शन करना रत्न को बार-बार पेटी में से निकालकर दिखाने के समान भयावह है। दान का प्रदर्शन फल को तो नष्ट करेगा जब करेगा, किन्तु दान के प्रदर्शन से चोर, डाकू या लुटेरों को पता लगने पर कि अमुक व्यक्ति के पास बहुत धन है तो उसे मारपीटकर धन छीन सकते हैं, लूट सकते हैं । इसलिए दान का दिखावा या आडम्बर जीवन के लिए खतरनाक है। व्यक्ति किसी चीज का दिखावा तभी करता है, जब उस चीज से रिक्त होता है। एक कहावत है -
"थोथा चना बाजे घना।" इसी प्रकार अंग्रेजी में एक कहावत है -
“Empty vessel sounds much.” - खाली बर्तन आवाज बहुत करता है।
.इसीलिए भारतीय मनीषियों ने गुप्तदान की बहुत महिमा बताई है। बिना किसी आडम्बर, समारोह, प्रतिष्ठा या प्रदर्शन के या तख्ती, बोर्ड या अखबारों में प्रकाशन के चुपचाप अपना कर्तव्य समझकर या अपने पाप के प्रायश्चित के रूप में गुप्त रूप से दान करना गुप्तदान है। गुप्तदान से सबसे बड़ा लाभ यह है कि देने वाले में अहंभाव नहीं आता और न प्रसिद्धि की भूख होती है तथा लेने वाले में हीन भावना या अपने को दबने या नीचा देखने की वृत्ति पैदा नहीं होती । जब देने वाला एहसान जताता है, रौब गाँठता है, अपने मुँह से बड़ाई हाँकता है और यह कहकर अपने अहं का झूठा प्रदर्शन करता है कि मैंने तुझे अमुक समय पर न दिया होता या सहायता न दी होती तो तेरी क्या दशा होती ? तू भूखा मर जाता। और इससे भी आगे बढ़कर जब दाता उससे स्पष्ट कहकर प्रत्युपकार की याचना करने लगता है, तब तो लेने वाले की आत्मा मर जाती है। इसीलिए रहीम ने एक छोटे-से दोहे में मांगने वाले और देने वाले की मृत दशा का वर्णन कर दिया है -