Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान की विशेषता
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२. देयद्रव्य-शुद्धिः
दान की विशेषता में दूसरी महत्त्वपूर्ण वस्तु है - देयद्रव्य का विचार । देय वस्तु मूल्यवान हो, यह महत्त्वपूर्ण बात नहीं है, किन्तु वह लेने वाले के लिए योग्य, हितकर, सुखकर और कल्पनीय है या नहीं ? उस देयद्रव्य से उसे कोई शारीरिक या मानसिक हानि तो नहीं पहुंचेगी? अगर देयद्रव्य कीमती है, किन्तु उससे लेने वाला सन्तुष्ट नहीं है या वह लेने से आनाकानी करता है तो वह देयद्रव्य उत्तम नहीं है। पाराशर स्मृति में स्पष्ट कहा है -
___कोई दाता किसी त्यागी, तपस्वी, निःस्पृह श्रमण या सन्यासी को सोना दान देता है, किसी ब्रह्मचारी को श्रृंगार योग्य वस्तु या ताम्बल देता है और चोर आदि दुष्टजनों को शास्त्रादि. या अभयदान देता है तो ऐसा दाता नरक में जाता
इसी प्रकार कोई व्यक्ति अन्याय-अत्याचार से धन कमाकर या दूसरे से छीन-झपटकर उस द्रव्य का दान किसी योग्य व्यक्ति को करता है,तो वह देयद्रव्य शुभ नहीं माना जाता । उससे आदाता की भी बुद्धि बिगड़ती है और दाता को भी पुण्य लाभ नहीं होता । ___महाभारत में कौरव सेनापति भीष्म पितामह जब अर्जुन के बाणों से घायल होकर रणभूमि में गिर पड़े तो सारे कुरुक्षेत्र में हाहाकार मच गया । कौरव-पाण्डव पारस्परिक वैर भूलकर उनके पास कुशल पूछने आए । धर्मराज ने रोते हुए रुद्ध कंठ से कहा - "पितामह ! हम ईर्ष्यालु पुत्रों को, इस अन्त समय में, जीवन में उतारा हुआ कुछ ऐसा उपदेश देते जाइए जिससे हम मनुष्य जीवन की सार्थकता प्राप्त कर सकें।" पितामह यह सुनकर होंठ खोलने ही वाले थे कि द्रौपदी के मुख पर एक हास्य रेखा देखकर सभी विचलित हो उठे और वे इस बेतुके हास्य से रोष भरे नेत्रों से द्रौपदी की ओर देखने लगे। पितामह इस हास्य का मर्म समझ गए । वे बोले - "बेटी द्रौपदी ! तेरे हास्य का मर्म में जानता हूँ । तूने सोचा है - जब दरबार में दुर्योधन ने साड़ी खींची, तब उपदेश देते न बना । वनों में पशुतुल्य जीवन व्यतीत कर रहे थे, तब सहानुभूति का एक १. यतिर्न कांचनं दत्ते, ताम्बूलं ब्रह्मचारिणे ।
चौरेभ्योऽप्ययं दत्ते, स दाता नरकं व्रजेत् ॥ - पाराशर स्मृति