Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 313
________________ २७४ दान : अमृतमयी परंपरा सुपात्र, कुपात्र और अपात्र के स्वरूप को जानने के बावजूद भी दानचतुर दाता स्वयं अपनी प्रज्ञा से दान के योग्य पात्र का निरीक्षण-परीक्षण करें और यह भी पता लगा ले कि कौन उत्कृष्ट सुपात्र है, कौन मध्यम सुपात्र और कौन जघन्य सुपात्र ? बाह्य चिन्ह, स्थूल दृष्टि, बाह्य वेश भूषा, बाह्य क्रियाओं पर से सुपात्रकुपात्र या पात्र-अपात्र का सहसा निर्णय न करके धैर्य से, सूक्ष्मदृष्टि से, भूतकाल के उसके जीवन से, भविष्य की उसकी सुसम्भावनाओं पर से निश्चित करे । इसलिए पात्र-अपात्र के विषय में तटस्थ दृष्टि से, साथ ही मानवीय भावना के साथ विचार करना चाहिए । हृदय और बुद्धि, शास्त्र और व्यवहार दोनों तुला पर तोलकर पात्र-विवेक करके दान में प्रवृत्त होना चाहिए ।

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