Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान के भेद-प्रभेद
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ज्ञानदान । भौतिक (आमिष) दान वह है, जो इन्द्रियों के विषयों से सम्बन्धित हो। वस्तुतः जो दान वस्तुनिष्ठ हो, वह आमिसदान कहलाता है, परन्तु जो दान भावनिष्ठ हो, वह धर्मदान कहलाता है । भाव या अभय का दान अधिक लाभदायक, आत्मा के लिए वस्तु की अपेक्षा विचार, ज्ञान, हितकारक और जीवन निर्माणकारी होता है।
धर्मदान की सर्वश्रेष्ठता तो सभी धर्मों में बताई गई है। पिछले पृष्ठों में हम बता चुके हैं कि धर्मदान श्रेष्ठदान है। क्योंकि जिसे अभयदान दिया जाता है वह भौतिक पदार्थों की अपेक्षा अपने जीवन को अधिक चाहता है, जीवन सबको प्यारा है। एक और सोने चांदी या रत्नों का ढेर हो और दूसरी ओर केवल अभय हो या ज्ञान अथवा विचार हो तो प्रत्येक प्राणी खासतौर से मनुष्य तो जिन्दगी को ही अधिक चाहता है। वर्तमान में प्रचलित दान : ... वर्तमान युग में जो दान प्रचलित है उनका हम संक्षेप में उल्लेख मात्र करते हैं -
भूदान, सम्पत्तिदान, साधनदान, श्रमदान, बुद्धिदान, समयदान, ग्रामदान, जीवनदान, रक्तदान, किडनीदान, चक्षुदान, चमड़ीदान, शरीरदान इत्यादि ।
उक्त दानों में पवित्रता बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि ये सभी दान निःस्वार्थ भाव से अथवा मानवीय दृष्टि से हों । अगर इनमें स्वार्थ, प्रदर्शन और नेतागीरी की भावना आ गई तो फिर उन दानों से कोई भी पुण्य या लाभ नहीं होने वाला है।
दान के ये और इस तरह के सभी प्रकारों का वर्णन हमने किया है। वास्तव में देखा जाये तो दान भावना पर निर्भर होने से उसके अनेक प्रकार हो सकते हैं, वस्तु की अपेक्षा से, पात्र की अपेक्षा से, आवश्यकता की अपेक्षा से
और जीवन-निर्माण की अपेक्षा से । अतः इनका वर्गीकरण करके पूर्व पृष्ठों में यत्र-तत्र धर्मशास्त्रों, ग्रन्थों एवं महान् व्यक्तियों द्वारा निर्दिष्ट एवं प्रचलित दानों का उल्लेख एवं उन पर सांगोपांग विवेचन प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।