Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान : अमृतमयी परंपरा चलाते हैं जिसमें आज ९० वर्ष की उम्र में भी उनकी शास्त्रीय एवं धार्मिक साहित्य सरिता सवेरे ९ बजे से रात ९ बजे तक अनेक आत्माओं को पवित्र करती रहती है। ऐसा ज्ञानदान कोटि-कोटि जन्मों के पाप-तापों को दूर करने में सहायक बनता है, वह एक जन्म के ही नहीं, अनेकानेक जन्म के दुःखों के निवारण में सहायता करता है।
सचमुच यह ज्ञानदान की प्याऊ है जहाँ अनेक ज्ञान पिपासु आत्माएँ अपनी ज्ञान पिपासा मिटाती हैं।
यही कारण है कि ऐसे शास्त्रदामी-ज्ञानदानी द्वारा प्रदत्त शास्त्रदान का आचार्य अमितगति ने महान् फल बताया है -
शास्त्रदान दाता को ज्ञानावरणीय कर्म का सर्वथा क्षय हो जाने पर चराचर विश्व को जाननेवाला केवलज्ञान प्राप्त होता है, उसकी तुलना में दूसरे ज्ञान प्राप्त होने का तो कहना ही क्या ? शास्त्रदान देने वाला सज्जनों या सन्तों में पूजनीय आदरणीय होता है, मनीषी उसकी सेवा करते हैं। वह वादियों को जीतने वाला, सभा का रंजनकर्ता, वक्ता, नवीन ग्रन्थ रचयिता कवि और माननीय होता है : उसकी शिक्षाएँ (उपदेश) विख्यात हो जाती है। .
यह है शास्त्रदानी या ज्ञानदानी का माहात्म्य ! इसी बात को पद्मनंदिपंचविंशतिका में स्पष्ट किया है -
- उन्नत बुद्धि के धनी भव्य जीवों को पढ़ने के लिए भक्ति से जो पुस्तक दान दिया जाता है अथवा उन्हीं के लिए तत्त्व का व्याख्यान किया जाता है, इसे विद्वान् लोग श्रुताश्रित दान (शास्त्रदान या ज्ञानदान) कहते हैं । इस ज्ञानदान के सिद्ध (परिपक्व) होने पर कुछ ही. भवों (जन्मों) में मनुष्य उस केवलज्ञान को प्राप्त कर लेते हैं, जिसके द्वारा सम्पूर्ण विश्व साक्षात् देखा जाता है
१. लभ्यते केवलज्ञानं यतो विश्वावभासकम् ।
अपरज्ञानलाभेषु कीदृशी तस्य वर्णना ॥ शास्त्रदायी सतां पूज्यः सेवनीयो मनीषिणाम् । वादी वाग्मी कविर्मान्यः ख्यातशिक्षः प्रजायते ॥५०॥ - अमितगति श्रावकाचार