Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान के भेद-प्रभेद
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की ओर मुड़ता है । यदि उसे व्यावहारिक ज्ञान नहीं होता और अन्धश्रद्धावश बिना ज्ञान के कोई भी धर्मक्रिया करता है तो उसका फल वह सम्यक् नहीं प्राप्त कर सकता । इसीलिए कहा है -
"पढमं नाणं तओ दया।" - पहले ज्ञान हो, तब दया शोभा देती है और वह दया विवेकपूर्वक होती है। जब अन्तर में जागृति आ जाती है तो मनुष्य ज्ञान के सिवाय और कुछ नहीं मांगता।
रामकृष्ण मिशन ने जब सबसे पहले जिला मुर्शिदाबाद में संकटनिवारण का कार्य प्रारम्भ किया, तब स्वामी विवेकानन्द ने स्वामी श्रद्धानन्द जी को एक पत्र में लिखा – “सिर्फ कुछ गरीबों को चावल दे देने से काम नहीं चलेगा। चिरकाल से हमारे यहाँ दान दिया जाता है, तो भी सहायता माँगने वालों की भारत में कमी नहीं । आप सहायता के साथ कुछ शिक्षा भी देते हैं या नहीं? जब तक कमाने की शक्ति आने से पहले लोगों का विवाह होता रहेगा, तब तक इन भुखमरों के नंगे बच्चे की शिक्षा नहीं होगी। इसके सिवा लुच्चे-लफंगे भी अपने को गरीब बताकर ले जाते हैं । इसलिए खासतौर पर सावधानी रखकर सहायता देना चाहिए।"
इसीलिए विद्यादान ही हमारा पहला मुख्य कार्य है। सच है, अन्नदान से तो सिर्फ एक दिन का संकट दूर होता है, पर विद्यादान से जिन्दगी भर का दुःख टलता है।
यही कारण था कि विद्यादान में संलग्न पं. मदनमोहन मालवीयजी ने विद्या के लिए एक सुन्दर योजना जनता को अन्न-त्याग करने की सलाह देकर बनाई थी।
जब महामना पं. मदनमोहन मालवीय हिन्दू विश्वविद्यालय के लिए प्रयत्न कर रहे थे। उसी दौरान बहुत से योजनादक्ष लोगों ने एक योजना बनाई थी कि प्रत्येक एकादशी का व्रत रखे और उस दिन के भोजन का जितना अन्न
१. अन्नदानात्परं नास्ति, विद्यादानं ततोऽधिकम् ।
एकेन क्षणिका तृप्तिर्यावज्जीवं तु विद्यया ।।