Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान के भेद-प्रभेद
और प्रभावशाली व्यक्ति से भयभीत व्यक्ति (चाहे वह श्राप दे देने, मार डालने या उसको सम्पत्ति लूट लेने के डर से भयभीत हुआ हो) को क्षमादान देना भी जीवनदान देने के समान है।
अभयदान का अगला पहलू है - शरणागत की रक्षा प्राणप्रण से
करना।
जैन इतिहास में मेघरथ राजा का और वैदिक इतिहास में शिवि और मेघवाहन राजा का शरण में आये हुए बाज को कबूतर के बराबर अपने अंग का माँस, यहाँ तक कि जब कबूतर का वजन बढ़ गया तो अपने सारे अंग देने को उद्यत होने का उदाहरण प्रसिद्ध है।
__शरणागत रक्षा के लिये मर-मिटनेवाले एक बालक का उदाहरण तो आश्चर्य में डालने वाला है। एक बार इंग्लैण्ड के राजा जेम्स द्वितीय के पुत्र चार्ल्स प्रथम जार्ज के सेनापति से परास्त होकर प्राण बचाने हेतु स्कॉटलैण्ड की पहाड़ियों में जा छिपे । चार्ल्स का सिर काटकर लाने वाले को ४ लाख रुपये इनाम देने की घोषणा की गई। चारों और खोज शुरु हुई। कुछ समय बाद चार्ल्स को ढूढने वाले एक कैप्टिन ने एक बालक से पूछा - "क्या तुमने प्रिंस चार्ल्स को देखा है ?" बालक बोला - "हाँ, जाते हुए तो देखा है, लेकिन यह नहीं बताऊंगा कि कब और किस रास्ते से जाते हुए देखा है।" कैप्टिन ने तलवार निकाली और बालक को डराया। इस पर भी जब वह भेद बताने को तैयार न हुआ तो उस पर तलवार का प्रहार भी किया गया । बालक का करुण क्रन्दन हुआ, लेकिन बालक ने कहा- "मैं मैकफरसन का पुत्र हूँ, इसलिए तलवार से डरने वाला नहीं। मुझे आप कितना ही कष्ट दीजिए, मैं संकट के समय शरण में आये हुए राजा को शत्रु के हाथों में फंसाने में सहायक नहीं बनूंगा। मैं अपने प्रण से विचलित नहीं होऊँगा ।" कैप्टिन उस वीर बालक की वीरता, साहस एवं दृढ़ता से प्रभावित हुआ और प्रसन्न होकर चाँदी का क्रॉस भेंट दिया।
शरणागत की रक्षा करके उसे अभयदान देनेवाला अपने प्राणों को भी संकट में डाल देता है।
इसके पश्चात् अभयदान के एक विशिष्ट पहलू की ओर ध्यान खींचना चाहते हैं। वह है - "किसी प्राणघातक बलिदान माँस भोज आदि कुप्रथा का