Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
View full book text
________________
दान के भेद-प्रभेद
२२७
टैलीमैक्स ने अपना बलिदान देकर बन्द करा दी । बंगाल में भयंकर रूप से प्रचलित सती-प्रथा में पति के मरने के बाद उसके पीछे उसकी पत्नी को जीते जी उसकी चिता के साथ जबरन जल मरना पडता था अथवा यों कहिए कि समाज के क्रूर लोगों द्वारा जबरन उसे जला दिया जाता था । राजाराममोहन राय ने इस भयंकर कुप्रथा के विरुद्ध जेहाद छेड़ा और ब्रिटिश सरकार की सहायता से कानून बनवाकर इस कुप्रथा को बन्द कराया । इसी प्रकार काली देवी के आगे गर्भवती सुन्दरियों की जीते जी बलि दी जाने की भयंकर कुप्रथा थी, जिसका अन्त 'वारेन हेस्टिंग्ज' ने अपने शासनकाल में करा दिया ।
1
इसी प्रकार की अनेक कुप्रथाओं का अन्त विभिन्न दयालु अभयदानियों ने अपना आत्मयोग देकर कराया है । यह भी उत्तम कोटि का अभयदान है इससे आगे अभयदान की एक कोटि है समाज, राष्ट्र या विश्व की दृष्टि से अनेक प्राणियों की रक्षा के लिए अपना बलिदान कर देना, विशिष्ट त्याग करना अथवा समर्पण कर देना । इस प्रकार के अभयदान में व्यक्ति को बहुत कुछ त्याग करना होता है । वास्तव में अभयदान में जो कुछ तप या त्याग करना होता है, उसकी तुलना में बाह्य तप या त्याग का इतना महत्त्व नहीं है । ज्ञानसार में इसी बात को स्पष्ट बताया है.
-
-
" किं न तप्तं तपस्तेन, किं न दत्तं महात्मना । वितीर्णमभयं येन प्रीतिमालम्ब्य देहिनाम् ॥"
- जिस महापुरुष ने जीवों को प्रीति का आश्रय देकर अभयदान दिया, उस महान् आत्मा ने कौन - सा तप नहीं किया और कौन-सा दान नहीं दिया ? उस महात्मा ने समस्त तप एवं दान दिया है, क्योंकि अभयदान में सभी तप और दान समाविष्ट हो जाते हैं
I
इसी प्रकार देश, राष्ट्र एवं समाज की रक्षा के लिए अपने प्राणों को खतरे में डालकर भी जनता की सुरक्षा के लिए अपने प्राणार्पण दिये, अपना सर्वस्व होमा है ।
अभयदान की दो कोटियाँ :
अभयदान के उपयुक्त विवेचन से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि अभयदान