Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
View full book text
________________
दान के भेद-प्रभेद
२१९ (४) कष्टों, दुःखों, रोगों या संकटों आदि में पड़े हुए मानवों या प्राणियों को उस
अवस्था से मुक्त कराकर उन्हें सुरक्षा का आश्वासन प्राप्त कराना । (५) भयभीत या अपराध के कारण या श्राप आदि के भय से डरे हुए प्राणी को
क्षमादान करना। (६) शरणागत प्राणी की प्राण देकर भी रक्षा करना । (७) ऐसा प्राणसंहारक, बलिदान आदि कुप्रथा या कुरूढ़ि को दयापूर्वक दूर कर
या कराकर प्राणियों में शान्ति एवं सुरक्षा की भावना पैदा करना । (८) राष्ट्र, समाज या विश्व की दृष्टि से अनेकों की रक्षा के लिए अपना प्राणदान
देना।
(९) विपत्ति के निवारण के लिए योगदान देना ।
ये और इस प्रकार के अन्य जो भी पहलू हैं, वे सब अभयदान के दायरे में आ जाते हैं।
अब हम क्रमशः इन सब पहलुओं पर विचार करेंगे -
जैन इतिहास का एक स्वर्णिम पृष्ठ है - मगध सम्राट श्रेणिक के पुत्र मेघकुमार का । मेघकुमार के रूप में जन्म लेने का मुख्य कारण तो उसके पूर्वजन्म में हाथी के रूप में किये हुए अभयदान के कार्य का परिणाम था। बात यह थी कि वे पूर्व जन्म में एक बुद्धिमान हाथी थे, यूथपति थे। एक गहन जंगल में विचरण करते और गजसमूह के साथ जीवनयापन करते थे। एक बार इस जंगल में भयंकर आग लगी । आग की लपटें दूर-दूर तक फैलती जा रही थीं। जहाँ पेड़-पौधे और वनस्पति थी, वहाँ तो इस आग से बचने का कोई उपाय न था। वन्य जीव अपने प्राण बचाने के लिए इधर-उधर बेहताशा भागने लगे । वे संकटग्रस्त एवं भयभीत प्राणी कहीं न कहीं निरापद एवं सुरक्षित स्थान में आश्रय चाहते थे। इस यूथपति हाथी को एक बात सूझी कि क्यों न मैं अपने सब हाथियों की मदद से पेड़-पौधे से मुक्त और खुली जमीन का बड़ा-सा मण्डल बना हूँ, जिसमें आकर बेचारे भयभीत एवं संकटग्रस्त जीव आश्रय ले लेंगे और अपने प्राणों की रक्षा कर लेंगे। उसने प्राणी-करुणा से प्रेरित होकर सब हाथियों के सहयोग से शीघ्र ही कार्य शुरु किया । आग अभी बहुत दूर थी, तब तक तो