Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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भारतीय संस्कृति में दान
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संस्कृत महाकाव्य में वृहतत्रयी में तीन का समावेश होता है किरातार्जुनीय, शिशुपालवध और नैषधचरित । महाकवि भारवि ने अपने काव्य 'किरातार्जुनीयं' में किरातरूपधारी और अर्जुन के युद्ध का वर्णन किया है। शिव के वरदान का और उसकी दानशीलता का काव्यमय भव्य वर्णन किया है । महाकवि माघ ने 'शिशुपालवध' में अनेक स्थलों पर दान का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है । माघ स्वयं भी उदार एवं दानी माने जाते रहे हैं । कोई भी याचक द्वार से खाली हाथ नहीं लौट पाता था । कवि का यह दान गुण उनके समस्त काव्य में परिव्याप्त है । श्री हर्ष ने अपने प्रसिद्ध काव्य नैषध में राजा नल और दमयन्ती का वर्णन किया है, जिसमें राजा नल की उदारता और दानशीलता का भव्य वर्णन किया गया है।
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संस्कृत के पुराण साहित्य में दान :
संस्कृत के पुराण साहित्य में दान का विविध वर्णन विस्तार से किया गया है। व्यास रचित अष्टादशपुराणों में से एक भी पुराण इस प्रकार का नहीं है । जिसमें दान का वर्णन नहीं किया गया हो । दान के विषय में उपदेश और कथाएँ भरी पड़ी है । रुपक तथा कथाओं के माध्यम से दान के सिद्धान्तों का सुन्दर वर्णन किया गया है ।
जैन परम्परा के पुराणों में आदिपुराण, उत्तरपुराण, पद्मपुराण, हरिवंशपुराण, त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित आदि में दान सम्बन्धी उपदेश तथा कथाएँ प्रचुर मात्रा में आज भी उपलब्ध है, जिनमें विस्तार के साथ दान की महिमा वर्णित है । इसके अतिरिक्त धन्यचरित्र, शालिभद्रचरित्र तथा अन्य चरित्रों में दान की महिमा, दान का फल और दान के लाभ बताए गए हैं ।
बौद्ध परम्परा के जातको में दान सम्बन्धी कथाएँ विस्तार के साथ वर्णित है । बुद्ध के पूर्व-भवों का सुन्दर वर्णन उपलब्ध है । बुद्ध ने अपने पूर्व भवों में दान कैसे दिया और किसको दिया, कितना दिया और कब दिया आदि विषयों का उल्लेख जातक कथाओं में विशद रूप में किया गया है ।
जैन परम्परा के आगमों की संस्कृत टीकाओं में तथा प्राकृत टीकाओं में तीर्थंकरों के पूर्वभवों का जो वर्णन उपलब्ध है, उसमें भी दान के विषय में विस्तार से वर्णन मिलता है । आहारदान के सम्बन्ध में कहीं पर कथाओं के