Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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भारतीय संस्कृति में दान
१५५ - तुलसी दोहावली में भी दान के विषय में कहा गया है - "सरिता में से, जो भरकर बह रही है, यदि पक्षी उसमें से थोड़ा जलपान कर लेता है, तो उसका पानी क्या कम पड़ जायेगा? ठीक इसी प्रकार दान देने से भी धन घटता
नहीं है।"
स्वामी रामतीर्थ ने दान के सम्बन्ध में कहा है - "दान देना ही धन पाने का एकमात्र द्वार है ।" सन्त विनोबा ने कहा है - "बुद्धि और भावना के सहयोग से जो क्रिया होती है, वही सुन्दर है। दान का अर्थ-फेंकना नहीं, बल्कि बोना ही है।" ____भारत के धर्मों के समान बाहर से आने वाले धर्म ईसाई और मुस्लिम धर्मों में भी दान का बड़ा ही महत्त्व माना गया है। दान के सम्बन्ध में बाइबिल और कुरान में भी ईसा और मुहम्मद ने अनेक स्थलों पर दान की महिमा का यथाप्रसंग वर्णम ही नहीं किया, बल्कि दान पर बल भी डाला है । दान के अभाव में ईसा मनुष्य का कल्याण नहीं मानते थे। ईसा ने प्रार्थना और सेवा पर विशेष बल दिया था, पर दान को भी कम महत्त्व नहीं दिया। बाइबिल में दान के विषय में कहा गया है- "तम्हारा दाया हाथ जो देता है, उसे बायाँ हाथ न जान सके, ऐसा दान दो।" इस कथन का अभिप्राय इतना ही है कि दान देकर उसका प्रचार मत करो । अपनी प्रशंसा मत करो। जो दे दिया, सो दे दिया । उसका कथन भी मत करो । क्रुरान में दान के सम्बन्ध में बहुत ही सुन्दर कहा गया है - "प्रार्थना ईश्वर की तरफ आधे रास्ते तक ले जाती है। उपवास महल के द्वार तक पहुता देता है और दान से हम अन्दर प्रवेश करते हैं।" इस कथन में यह स्पष्ट हो जाता है कि जीवन में दान का कितना महत्त्व रहा है। प्रार्थना
और उपवास से भी अधिक महत्त्व यहाँ पर दान का माना गया है । मुस्लिम विद्वान् शेखसादी ने कहा है – “दानी के पास धन नहीं होता और धनी कभी दानी नहीं होता ।" कितनी सुन्दर बात कही गई है। जिसमें देने की शक्ति है, उसके पास देने को कुछ भी नहीं और जिसमें देने की शक्ति न हो, वह सब कुछ देने को तैयार रहता है। अतः दान देना उतना सरल नहीं है, जितना समझ लिया गया है । दान से बढ़कर अन्य कोई पवित्र धर्म नहीं है । जो बिना मागे ही देता हो, वही श्रेष्ठ दाता है। एक कवि ने बहुत ही सुन्दर कहा है - "दान से सभी