Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान : अमृतमयी परंपरा सामने इन मुट्ठीभर (१०००) रुपयों का क्या मूल्य है ? मुझे वे रुपये तुमसे बिलकुल नहीं लेने हैं । वे रुपये मैंने तुम्हें अपनी बहन मानकर दे दिये, समझ
लो।"
आभारवश हर्षाश्रुओं से पूर्ण आँखे ऊँची करते हुए वह विधवा नौकरानी, जिसकी आते ठण्डी हो गइ थी; बोली ! "भाई ! तू सौ वर्ष का हो ।''
कर्वे आगे कहने लगे- "चिकित्सा विज्ञान भले ही मेरे शतायु होने का कारण दूध-फल खाना और नियमित घूमना बताये, परन्तु मैं सौ वर्ष जीया हूँ, उसका कारण मुझे तो निःसहाय नौकरानी जैसी कई बहनों व दीन-दुःखी भाइयों के अन्तर से मिला हुआ आशीर्वाद ही मालूम होता है और जिसे भी मैंने इस प्रकार से दान के रूप में सहायता दी, वह मेरे वश हो गया, मेरा अपना बनकर जिन्दगी भर तक रहा।"
उपर्युक्त दृष्टान्त से यह भी फलित होता है कि दान करने से मनुष्य दीर्घायु होता है।
भारतवर्ष में ऐसी कई कौमें हैं. जिनमें दरिद्रता नाम की कोई चीज नहीं. मिलती । मुसलमानों में बोहरा कौम ऐसी है, जिसमें अगर किसी व्यक्ति की स्थिति बिगड़ने लगती है अथवा कोई आकस्मिक संकट, बेरोजगारी या बेकारी आ जाती है तो जाति के सभी व्यक्ति मिलकर उसे चन्दा करके सहायता पहुँचा देते हैं और अपने बराबर का व्यापारी बना देते हैं या अन्य किसी उपयुक्त व्यवसाय में लगा देते हैं। उसे दान देकर भी यह महसूस नहीं होने देते कि मैं दीन-हीन हूँ या निर्धन हूँ।
इसी प्रकार की परिपाटी पारसी कौम में है । पारसी लोग अपनी बिरादरी में किसी व्यक्ति को निर्धन या साधनहीन नहीं रहने देते । उनमें यह विशेषता है कि वे जब भी किसी भाई को संकटग्रस्त देखते हैं तो उसे कोई न कोई रोजगार धन्धा दे या दिलाकर उसकी दरिद्रता को मिटा देते हैं । इसीलिए दान के लिए चाणक्य नीति में स्पष्ट कहा गया -
___ "दारिद्रयनाशनं दानम् ।" दान वास्तव में दरिद्रता को नष्ट करता है।