Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान से लाभ
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अनाज या अन्य आवश्यक वस्तुएँ देती रहती । मध्यमवर्गीय कुलीन लोग, जो किसी के आगे हाथ नहीं पसार सकते थे, उन्हें वह चुपचाप मदद करती थी। इस प्रकार दान का मार्ग ग्रहण करने से पहले उसका जीवन शुद्ध बन गया और दान के बाद भी उसका धर्माचरण में जीवन रंग गया। इस दान प्रवृत्ति से उसे बहुत ही सन्तोष, एवं आत्म - शान्ति मिलने लगी । दानप्रवृत्ति के कारण घर-घर में उसका नाम फैल गया । इतिहास में वह आम्रपाली वेश्या के नाम से प्रसिद्ध हुई। बाद में उसने तथागत बुद्ध के चरणों में अपनी सारी सम्पत्ति अर्पित कर दी और भिक्षुणी बनकर अपने जीवन की पूर्णतया शुद्धि कर ली ।
इस प्रकार दान से व्यक्ति को जीवन शुद्धि और आत्म- शान्ति प्राप्त होती है। व्यक्ति अपने तन, मन, धन को दानप्रवृत्ति में लगाकर परम सन्तोष का अनुभव करता है ।
रूस के 'पीटर दि ग्रेट' ने अनुभव की आँच में तपी हुई बात कही है"दान असंख्य पापों का छेदन करने वाला है । "
इस तथ्य को प्रमाणित करने के लिए रॉकफेलर का जीवन प्रसंग प्रस्तुत किया जाता है.
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'जॉन डी रॉकफेलर' अमेरिका का एक धनाढ्य व्यक्ति था । उसने अनैतिकता से व्यापार में बहुत ही धन कमाया था । वह अपने नौकरों को बहुत सताता और उनसे कसकर काम लेता था । वह इतना हृदयहीन था कि कभी किसी दुःखी, भूखे या अभावग्रस्त को देखकर उसके हृदय में करुणा, दया या सहानुभूति नहीं पैदा होती थी, न वह किसी को दान देता था ।
एक बार रॉकफेलर बीमार पड़ा । कोई भी डाक्टर उसे स्वस्थ न कर सका। ज्यों-ज्यों इलाज करते गए, मर्ज बढ़ता ही गया। रॉकफेलर पीड़ा के मारे बैचेन रहता, मगर परिवार, समाज या डाक्टर कोई भी उसे शान्ति न दे सका । उसके माता-पिता ने यह घोषणा कर दी कि "जो कोई इस बीमारी को मिटा देगा, उसे मैं अपनी सारी सम्पत्ति का मालिक बना दूँगा ।
'रॉकफेलर ने भी कहा " चाहे जितना धन ले लो, मेरा रोग मिटा दो।" एक दिन रॉकफेलर के मन में अपने प्रति ग्लानि, आत्म-निन्दा और
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