Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान : अमृतमयी परंपरा
लिए बिना खाली हाथ अपने पिता के पास वह वापस लौट आया। पिताजी ने उसके चिन्तित चेहरे पर से ही अनुमान लगा लिया कि यह खाली हाथ आया मालुम होता है । उन्हें पता लग गया कि लड़का शहरों की भूलभुलैया में फँस गया हैं, इस कारण कुछ भी सौदा नहीं खरीद सका और लौट आया ।
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यह एक रूपक है। इस रूपक का उद्देश्य - लक्ष्य के सम्बन्ध में विचार करना है ।
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मानव भी एक व्यापारी पुत्र है । संसार की विविध योनियों और गतियों रूपी नगरों और राष्ट्रों में घूम आया है। अब यह मानवरूपी व्यापारी का पुत्र बना है । अभी इसे पता ही नहीं है कि मानवगति में, मनुष्य योनी में वह किसलिए आया है ? वह यह भी भूल जाता है संसार नगर में उसे कौन सा माल खरीदना है ? उस माल के लिए कहाँ-कहाँ किसके पास जाना है और वापस कब लौटना है ? संसार नगर में पहुँचा हुआ मानवपुत्र नगर की सांसारिक चकाचौंध में, इन्द्रियविषयों रूपी माल से सजी हुई दुकानों में, कषायोत्तेजक दर्शनीय स्थलों में, स्वैर विहार में, अधर्म की गलियों में इधर-उधर भटकता रहता है। उसे चलना था मोक्ष ले जानेवाले मार्गों पर; परन्तु चलने लगता है पाप, अधर्म एवं दुष्कृत्य की ओर ले जानेवाली राहों पर; उसे पहुँचना था अपने लक्ष्य-मोक्षनगर को; लेकिन वह संसार नगर की भूलभुलैया में, विषयों की चकाचौंध में और कषायों की धमाचौकड़ी में ही भटक जाता है, उसी में रम जाता है। इसी में उसका आयुष्यरूपी मास पूरा हो जाता है और मृत्यु (यमराज) का बुलावा आ जाता है । परन्तु वह आयुष्य पूर्ण होते समय घबराता है, पश्चात्ताप करता है कि हाय ! मैंने संसार नगर में आकर अभीष्ट लक्ष्य-प्राप्ति के लिए जो सत्कार्य करने थे, उन्हें नहीं कर सका और खाली हाथ रह गया ।
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मानव-जीवन का लक्ष्य :
मनुष्य को अपने जीवन का लक्ष्य, जो सर्वधर्मों एवं सर्वदर्शनों द्वारा मान्य है, जिसे सभी ऋषियों मुनियों, तीर्थंकरों और अवतारों ने एक स्वर से स्वीकारा है, उसे इस संसार में आकर भूलना नहीं है । साथ ही, लक्ष्य से भटकानेवाले, लक्ष्य के अनुकूल कार्यों से विमुख करनेवाले कार्यों से हटकर लक्ष्यानुकूल कार्यों में अहर्निश, संलग्न रहना चाहिए |