Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान की परिभाषा और लक्षण
दान और महादान में फर्क दान शब्द की जो विभिन्न व्याख्याएँ प्रस्तुत की गई हैं, उनमें सामान्य दान की अपेक्षा विशिष्ट दान की व्याख्या भी है। सामान्य दान में तो प्रत्येक कोटि के पात्र को दान देने का विधान है, जबकि उत्कृष्ट पात्र (मुनिवर) को दिया जाने वाला आहार आदि पदार्थ उत्कृष्ट दान कहलाता है । यद्यपि दान के दोनों लक्षण तत्त्वार्थसूत्रकार के द्वारा प्रतिपादित लक्षण में समाविष्ट हो जाते हैं। उसे एक आचार्य ने महादान की संज्ञा दी है। उन्होंने महादान और दान का अन्तर बताते हुए कहा है -
"न्यायात्तं स्वल्पमपि हि भृत्यानुरोधतो महादानम् ।
दीनतपस्व्यादौ गुर्वनुज्ञया दानमन्यत्तु ।"
- भृत्य आदि के अन्तराय न डालते हुए थोड़ा-सा भी न्यायोपार्जित पदार्थ योग्य पात्र को देना महादान है, इसके अतिरिक्त दीन, तपस्वी, भिखारी आदि को माता-पिता आदि गुरुजनों की आज्ञा से देना दान है।
___ व्यापक दृष्टिकोण से जो भी योग्य (दान के योग्य) सुपात्र है, उसे देना महादान है, बशर्ते कि देय वस्तु न्यायोपात्त हो, शुद्ध भावनापूर्वक दी जाती हो, चाहे वह.थोड़ी-सी ही क्यों न हो, वह महादान है; जबकि अनुकम्पा पात्रों को माता-पिता आदि गुरुजनों की अनुज्ञा से देय वस्तु देना सामान्य दान है।
राजकुमारी चन्दनबाला ने दासी-अवस्था में भगवान महावीर को देय वस्तु बहुत ही अल्प और अल्प मूल्य के उड़द के बाकुले के रूप में दी थी। लेकिन वह न्याय प्राप्त थी, भृत्यादि के अन्तराय डालकर किसी से छीनकर, अपहरण, शोषण, अत्याचार - अन्याय से प्राप्त वस्तु नहीं थी। साथ ही उत्कट भावपूर्वक वस्तु दी गई थी। इसलिए वह दान अल्प और अल्प मूल्य होते हुए भी महादान बना।
- गुरुनानक के जीवन का एक सुन्दर प्रसंग है । गुरुनानक के अनेक शिष्यों में से एक शिष्य था - 'लालो' ! वह जाति का बढ़ई था और अपने गाढ़े श्रम से उपार्जित अन्न खाता था। एक बार गुरुनानक अपने इसी शिष्य लालो के गाँव में ठहरे हुए थे; तो मलिक भगो, जो मुगल सम्राट की ओर से उस प्रान्त का