Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान से लाभ
चतुर्थ अध्याय दान से लाभ
एक उक्ति के अनुसार - " प्रयोजनमनुद्दिश्यंमन्दोऽपि न प्रवर्तते । " अर्थात् किसी भी काम में मूर्ख या मन्द बुद्धि भी तब तक प्रवृत्त नहीं होता, जब तक वह उस कार्य का प्रयोजन न जान ले अथवा उस कार्य का महत्त्व न समझ ले । मतलब यह है कि समझदार मनुष्य किसी उद्देश्य को सामने रखकर ही कार्य करता है ।
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दान के सम्बन्ध में भी यह बात तर्कशील व्यक्ति प्रस्तुत करते हैं कि दान हम क्यों दें? एक तो हम अपनी चीज से वंचित हो और फिर उसके देने से कोई प्रयोजन भी सिद्ध न होता हो, क्योंकि दान में तो अपने स्वामित्व की कुछ -न-कुछ चीज निकाली या छोड़ी ही जाती है, अगर दान के रूप में किसी वस्तु को छोड़ने से कोई लाभ भी न हो, तब दान देने से क्या फायदा |
दिया हुआ कुछ भी निष्फल नहीं जाता
इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न के उत्तर में नीतिकार कहते हैं
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“पात्रे धर्मनिबन्धनं तदितरे श्रेष्ठं दयाख्यापकम्, मित्रे प्रीतिविवर्धनं तदितरे वैरापहारक्षमम्, भृत्ये भक्तिभरावहं नरपतौ सम्मानसम्पादकम्, भट्टादौ सुयशस्करं वितरणं न क्वाऽप्यहो निष्फलम् ॥”
सिन्दूर प्रकरण ८१
दान कहीं भी निष्फल नहीं जाता। देखो, सुपात्र का दान देने से वह धर्म का कारण बनता है । दीन-दुःखी या अनुकंपा योग्य पात्रों को देने से वह