Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान से लाभ
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है, धन-सम्पन्न की धन के प्रति जो ममता और अहंता का अभिनिवेश (आग्रह) है, उसे वह तोड़ देता है, दान अभ्युदय की परम्परा को बढ़ाता है, धर्म का सारभूत (श्रेष्ठ) अंग है और हृदय में अनुकम्पा को जन्म देने वाला है।
पोचमपल्ली (हैदराबाद) में जब एक रात में साम्यवादियों की राय से कई जमींदारों का सफाया कर दिया गया, तो उस नृशंस हत्याकाण्ड को देखकर चारों और त्राहि-त्राहि मच गई तो राष्ट्रसन्त विनोबा जी पैदल यात्रा करके वहाँ पहुचे । सारी स्थिति का अध्ययन किया तो पता लगा कि जमींदारों ने गरीबों के पास रोटी का कोई साधन (जमीन) नहीं दिया है, बार-बार चेतावनी देने के बावजूद भी ये जमींदार नहीं समझे, न उन्होंने अपनी जमीन में से गरीबों को रोटी का साधन दिया और न ही उन्हें कहीं रोजगार धन्धा दिया, फलतः साम्यवादियों से मिलकर उन्होंने एक ही रात में बहुत-से जमींदारों का कत्ल कर दिया । विनोबा जी ने इसका अहिंसक हल खोज निकाला-'भूदान' । उन्होंने बताया कि
दान ही वह संजीवनी औषध है, जो जमींदारों और गरीबों (भूमिहीनों) को जिला . सकती है। उन्होंने अपनी सभा में उपस्थित लोगों के सामने 'भूमिदान' की मांग
की – “है कोई इन भूमिहीन गरीबों को भूमि देकर विषमता को मिटाने के लिए तैयार ?"
सभा में से रामचन्द्रन् रेड्डी नामक एक जमींदार खड़ा हुआ और उसने अपनी जमीन में से १०० एकड़ जमीन भूमिहीनों में बाँट देने की घोषणा की। बस, वहीं से भूदान की गंगा बह चली और सारे हिन्दुस्तान में फैल गई। स्वेच्छा से दिये गये भूदान के प्रभाव से जमींदारी अत्याचार बन्द हो गए' भूमिहीन लोग शान्त हो गये। भूमिधरों के हृदय में भी करुणा और सहानुभूति प्रगट हुई। कई जगह तो भूमिहीनों ने भूदाताओं को अन्तर से दुआ दी।
गुजरात में जब भयंकर दुष्काल पड़ा था । जनता दाने-दाने को तरस रही थी तभी गुजरात के खेमाशाह देदराणी जैसे कई शाहों ने मिलकर उस भयंकर दुष्काल-निवारण का जी-तोड़ पर्यन्त किया ।
इसी प्रकार जगडूशाह ने वि.सं. १३१२ के बाद ३ साल तक गुजरात में पडे हुए भयंकर दुष्काल के निवारण के लिए मुक्तहस्त से अन्नादि देकर उस