Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान का महत्त्व और उद्देश्य
- दान, शील, तप और भाव ये चार मोक्ष के मार्ग हैं, धर्म के अंग हैं, वीतराग परमात्मा ने संसार के प्राणियों के कल्याण के लिए इनका निरूपण किया है । यह चतुर्विध मोक्षापाय मेरे हृदय में सतत रमण करे । चारों धर्मों में सबसे आसान धर्म - दान :
ये चार मार्ग हैं - मोक्षोपाय हैं, जो मानव-यात्री को अपनी मंजिल तक पहुँचा देते हैं। परन्तु यात्री के सामने फिर वही प्रश्न खड़ा होता है कि इन चारों मार्गों में से कौन-सा मार्ग उसके लिए आसान, अल्प-कष्ट-साध्य, सुलभ और आरामदेह होगा।
___ जैसे एक जिज्ञासु यात्री को महात्मा ने सड़क का मार्ग सबसे आसान, अल्प-कष्ट-साध्य राजमार्ग बता दिया, वैसे ही यहाँ दान-शील, तप और भाव इन चारों मार्गों में आसान और सर्वजन सुलभ मार्ग दान का है। क्योंकि तप प्रत्येक व्यक्ति के लिए आसान नहीं है और लम्बा बाह्य तप सबके लिए अनुकूल भी नहीं होता और तप प्रतिदिन सम्भव भी नहीं है। इसलिए तप आबाल-वृद्ध सबके लिए इतना सुलभ नहीं है । और शील भी विषयासक्त मनुष्यों के लिए सुगम नहीं है। जो सामान्य गृहस्थ हैं, उनके लिए शीलपालन दुःशक्य है। फिर प्रत्येक गृहस्थ के लिए प्रतिदिन शीलपालन भी दुष्कर है। त्यागी मुनियों के लिए पूर्णरूपेण शील (ब्रह्मचर्य) का पालन विहित है, नव वाड (गुप्ति) पूर्वक ब्रह्मचर्य का विशुद्ध पालन अत्यन्त दुष्कर है।
. जो व्यक्ति आरम्भ-समारम्भ में संलग्न रहते हैं, रात-दिन गृहकार्यों में व्यापार व्यवसाय में या खेती आदि में अथवा कल-कारखाने आदि आजीविका के कार्यों में जुटे रहते हैं, उनके लिए शुद्ध भाव भी सुकर नहीं है। भाव तो हृदय की वस्तु है, जहाँ तक व्यक्ति आरम्भादि में लगा रहता है, उसका दिल-दिमाग भी प्रायः उसी ओर लगा रहता है। प्रतिक्षण या प्रतिदिन भाव का लगातार बना रहना भी दुष्कर है। इसीलिए एक आचार्य ने इस विषय में बताया है -
'न तवो सुट्ठ गिहीणं, विसयासत्ताण होइ न तु सीलं ।
सारंभाण न भावो तो साहीणं सया भावं ॥१
गृहस्थों के लिए तप करना सरल नहीं होता, विषयासक्तों के द्वारा १. अभिदान राजेन्द्रकोष