Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान का महत्त्व और उद्देश्य
इसी तरह जब दान और भोग से रहित संचित धन नष्ट हो जाता है, तो व्यक्ति मधुमक्खी की तरह सिर धुनकर हाथ मलता हुआ पश्चात्ताप करता है। इसके विपरीत जो उदारचेता होते हैं, वे राजा कर्ण की तरह देने में आनन्द की अनुभूति करते हैं । गुजरात के प्रसिद्ध कवि दलपतराय ने ऐसे लोगों को चेतावनी दी है -
"माखिए मध संचय कीg, नवि खाधुं नवि दानज दीधुं । लूटन हाराए लूटी लीधुं रे, पामरप्राणी, चेते तो चेताऊँ तने रे ।"