________________
५१
दान का महत्त्व और उद्देश्य
इसी तरह जब दान और भोग से रहित संचित धन नष्ट हो जाता है, तो व्यक्ति मधुमक्खी की तरह सिर धुनकर हाथ मलता हुआ पश्चात्ताप करता है। इसके विपरीत जो उदारचेता होते हैं, वे राजा कर्ण की तरह देने में आनन्द की अनुभूति करते हैं । गुजरात के प्रसिद्ध कवि दलपतराय ने ऐसे लोगों को चेतावनी दी है -
"माखिए मध संचय कीg, नवि खाधुं नवि दानज दीधुं । लूटन हाराए लूटी लीधुं रे, पामरप्राणी, चेते तो चेताऊँ तने रे ।"