Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान का महत्त्व और उद्देश्य
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विदेशी साहित्यकार विक्टर ह्यूगो ने एक दिन ठीक ही कहा था - "ज्यों ही पर्स रिक्त होता है, मनुष्य का हृदय समृद्ध होता है।"
वास्तव में दान देना केवल देना ही नहीं होता, अपितु देने के साथसाथ हृदय करुणा, मैत्री, बन्धुता, सेवा, सहानुभूति, परोपकार एवं आत्मीयता के गुणों से परिपूर्ण एवं समृद्ध होता जाता है। अव्यक्त रूप से दानी व्यक्ति में इन भावों के संस्कार सुदृढ़ होते जाते हैं । इसलिए एक अंग्रेज विचारक का यह कथन अनुभव की कसौटी पर सही उतरता है – “The hand that gives, gathers.”
___ "जो मानव अपने हाथ से दान देता है, वह देता ही नहीं, वरन् अपने हाथ से इकट्ठा (गुण, यश आदि) करता है।"
___दान का अवसर पूर्व-जन्म के किसी प्रबल पुण्य से ही मिलता है । बहुत लोगों को तो दान देने की कभी भावना ही नहीं होती । इसलिए दान देने की भावना उठते ही या दान का अवसर आते ही 'शुभस्य शीघ्रम्' के अनुसार झटपट दान दे देना चाहिए।
भगवान महावीर का प्रेरणा सूत्र यही सन्देश देता है - . "मा पडिबंध करेह ।"
शुभकार्य में जरा भी ढील न करो । दान जैसे शुभ कार्य में प्रमाद करने पर बाद में उस अवसर के खोने का पश्चात्ताप होगा।
धारानगरी का राजा भोज अपनी साहित्यप्रियता और दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था। सरस्वती और लक्ष्मी दोनों का उसमें अद्भुत संगम था । दान देते समय वह आगा-पीछा नहीं सोचता था, न दान देने के बाद पश्चात्ताप या किसी प्रकार का और विचार ही करता था । उसका प्रेरणा सूत्र यही चिन्तन था - "Give without a thought" "दो, पर किसी प्रकार का विचार किये बिना दो।" उसके मंत्री ने सोचा - "राजा अगर इसी तरह दान देता रहेगा तो एक दिन खजाना खाली ह्ये जायेगा। इसलिए उसने कागज पर श्लोक की एक लाइन लिखकर राजा की शय्या के सामने दीवार पर टाँग दी । उस पर लिखा था - "आपदर्थे धनं रक्षेत् ।" आपात्काल के लिए धन बचाकर रखना चाहिए । राजा
. नाता