Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान का महत्त्व और उद्देश्य जमीन के साथ वर्षाशन कायम कराये । कई पाठशालाएँ खुलवाई।।
... बादशाह ने उनकी सब बातें मान्य की और उन्होंने बड़ी जागीरी दी। आज भी श्रावणवदी ६ को किसी-किसी गाँव में शिराल सेठ की स्मृति में उत्सव-मेला मनाया जाता है।
देशबन्धु चित्तरंजनदास के जीवन की एक घटना है। रविवार का दिन था। प्रात:काल के समय अपने विशाल 'सेवासदन पुस्तकालय में बैठकर कोर्ट के कुछ महत्त्वपूर्ण कागज देख रहे थे। इसी समय चपरासी ने हॉल में प्रविष्ट होकर बाहर मिलने के लिए आये हुए किसी आगन्तुक का विजिटिंग कार्ड उनके हाथ में दिया । उस पर नाम लिखा था - "उपेन्द्रनाथ बन्धपाध्याय' - सम्पादक 'वसुमति' । नाम पढ़ते ही दास बाबू ने चपरासी से कहा - "कार्ड देने वाले को आने दो।"
. चपरासी बाहर गया और उपेन्द्रबाबू को भीतर आने दिया । तुरन्त दासबाबू ने उनसे पूछा – “कहिए, क्या आज्ञा है ?"
"आज्ञा तो कुछ नहीं है। प्रत्येक रविवार को प्रात:काल आप दान देतें हैं। अत: में दान लेने आया हूँ।" - वसुमति के सम्पादक ने कहा। __. "मैं कौन हूँ, जो दान कर सकता हूँ। मुझ में दान देने का सामर्थ्य नहीं हैं। हम तो वकील हैं, देने का नहीं, लेने का धन्धा करते हैं। लोगों को लड़ाना और पैसे कमाना हमारा धन्धा है।" चित्तरंजन बाबू ने कहा।
उपेन्द्रनाथ – “आपको मेरी बात उपहास के योग्य लगती है। पर सच बात यह है कि मैं आपसे दान लेने को ही आया हूँ। आपको कदाचित् मालूम होगा कि कतिपय उच्च साहित्यकारों की सुन्दर पुस्तकें मूल्य अधिक होने के कारण जनता के हाथों में नहीं पहुंच पातीं। अतः इस स्थिति को दूर करने और आम जनता को उत्तम साहित्य सस्ते दामों में देने के लिए वसुमति कार्यालय ने एक योजना बनाई है और ८०० पृष्ठों की पुस्तक सिर्फ डेढ़ रुपये में देने को हम तैयार हैं । यह पुस्तक देखिये - यों कहकर उपेन्द्रनाथ ने उनके हाथ में पुस्तक थमा दी।"
दासबाबू ने पुस्तक हाथ में ली । उसके पृष्ठों को एक-दो मिनट तक