Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दान : अमृतमयी परंपरा दान दाता को फल देता है उसमे कोई संशय-शंका नहीं, परन्तु दाता की तरह अनुमोदना करनेवाले को भी फल देता है।
आचार्य अमितगति दान के विषय में कहते हैं - "दान, पूजा, शील तथा तप ये चार भवसागर रूपी वन को भस्म करने के लिए आग के समान है। इस संसार में आसुरी तत्त्वों, अमानवीय तत्त्वों, मोहमाया, अंधकार वगैरह तत्त्वों को जलाकर भस्म करने के लिए आग के समान है । गृहस्थ की शोभा दान है।
हमारे सूत्रवेत्ता कहते हैं कि धन की तीन गतियाँ होती है । दान, भोग और नाश । सबसे उत्तम दान है जिस दान में चित्त, वित्त, पात्र तीनों शुद्ध हो वह दान उच्च कोटि का सुपात्र दान है। दान देने से हमारा धन उस व्यक्ति के पास पहुँच जाता है जिसे उसकी आवश्यकता है। अगर दान नहीं देना है तो हम उसका भोग करें। भोग से जीवन का फूल मुरझा जाता है और त्याग से खिलता है। योगी योग में मस्त रहता है, भोगी भोग में मस्त रहता है। मस्त दोनों हैं फर्क इतना है कि एक अंत में रोता है और दूसरा हँसता है। दान और भोग नहीं करने पर उसका नाश होना अवश्यम्भावी है। इस क्षण भंगुर जीवन में भौतिक संग्रह को छोड़कर आत्मिक संग्रह पर ध्यान देना चाहिए। इससे मानव को परम शान्ति. की अनुभूति होती है। उत्तम दान से भव परम्परा घटती है और मोक्ष प्राप्ति के अनुकूल निमित्त भी मिलते हैं। उदाहरणार्थ-संगम ग्वाला ने विशुद्ध भावों से मुनि को खीर का दान देकर, पुण्यानुबंधी पुण्य का अर्जन कर दूसरे भव में शालिभद्र बने व अपरिमित ऋद्धि के स्वामी बने, फिर संयम ग्रहण कर, सर्वार्थ सिद्ध में गये वहाँ से एक भव मनुष्य का करके सिद्ध गति को प्राप्त करेंगे, यह सब उत्तम दान का प्रभाव है । दान देते समय भावना प्रशस्त होनी चाहिए । जिसकी जैसी भावना होती है वैसा ही फल प्राप्त होता है। चंदनबाला ने उड़द के बाकुले दिए, जिसे श्रद्धापूर्वक भगवान को बहराये । चंदनबालाजी का हृदय भावों से गद्गद् हो हर्ष-विभोर हो गया । खुशी का पार नहीं रहा । नयनों में अश्रुधारा बह आई, मन और शरीर प्रफुल्लित एवं पुलकित हो उठा, यह है प्रशस्तभाव । कर्ण ऐसा महादानी था कि जिसके पास अन्त में देने को कुछ भी नहीं बचा फिर भी याचक को खाली हाथ नहीं लौटाया । अपने दांतों में लगे स्वर्ण पत्थर की चोट से निकाल कर दे डाला । दधिची, शिवी का, बलि का, भामाशाह का दान