Book Title: Dan Amrutmayi Parampara
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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चाहता हू ।
दान : अमृतमयी परंपरा
मुनि ने सुमेद को जवाब दिया, 'सेठ श्री ऐसा तो कभी हुआ नहीं और न कभी होने वाला है । कोई भी मृत्यु के बाद सम्पत्ति साथ लेकर गया नहीं ।
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अन्त में सुमेद ने उपाय खोज निकाला । उपाय यह कि सुमेद ने सम्पत्ति का दान करके संसार का त्याग करने का उपाय बताया। उपाय खोजकर उसने सारी सम्पत्ति का दान करके दीक्षा ग्रहण कर ली ।
इस कथा का बोध पाठ प्रत्येक मनुष्य को ग्रहण करने जैसा है । आचार्य श्री रजनीश ने इस संदर्भ में सही कहा है, 'दुनिया की कोई सम्पत्ति मनुष्य मृत्यु के उपरान्त साथ नहीं ले जा सकता । सिवाय दिल के अन्दर की सम्पत्ति जो ध्यान है । यह ज्ञान जिसे प्राप्त हो जाता है वही मृत्यु के समय साथ आनेवाली सम्पत्ति का स्वामी है। सच्चा अमीर वही है जो मृत्यु के बाद भी साथ में कुछ लेकर जाता है |
गुरु नानक ने भी कहा है, 'सच्चा धन तो वही है जो मृत्यु के पश्चात् भी मूड़ी बनकर हमारे साथ आता है। प्रभु नाम के बैंक से ट्रेवलर्स चेक अंतिम यात्रा में ले जाया जा सकता है। प्रभु की सेवा यही सच्ची सेवा है। अंदर का ज्ञान' यही सच्ची सम्पत्ति है ।'
मेरा मुझ में कुछ नहि, सब कुछ हो तो, तेरा, तेरा तुझको सौंप दू, तो क्या लगेगा मेरा ।
ऐसे भी मृत्यु के समय दुनिया की कोई वस्तु साथ नहीं आती, साथ आता है सिर्फ धर्म, संस्कार, सत्कर्मों और पुण्य । स्वामी शिवानंद ने लिखा है - ‘Be Good, Do Good' अर्थात् भला बनों और भला करों यही शेष जीवन की कमाई है।