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अट्ठाइस
चारित्र चक्रवर्ती
तक जन - जन में श्रद्धा के पात्र बने रहेंगे। आगम परंपरा के दृढ़ संरक्षक और प्रचारक के प्रबल स्तंभ के रूप में भविष्य पंडितजी की स्मृति को सदैव विनयावनत प्रणाम करता रहेगा।
पूज्य पंडितजी की आचार्य महाराज के प्रति अगाध श्रद्धा-भक्ति थी। वे उनके अनन्य भक्त के रूप में विख्यात थे।
- 'चारित्र चक्रवर्ती' ग्रंथ के बारे में पूज्य पंडितजी ने स्वयं लिखा है- “मुझे अपने जीवन में कई वर्ष पर्यन्त अनेक बार इन साधुराज के समीप बहुत समय तक रहने का सौभाथ मिला। कई वर्षों में पर्दूषण भी इन गुरूदेव के सान्निध्य में व्यतीत होता था। उस सत्संग से प्राप्त अनुभवामृत को विशुद्ध रूप से मैंने चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ में निबद्ध किया है।" इस ग्रंथ में लिखित आचार्य महाराज के जीवन संबंधी सामग्री को एकत्रित करने में पूज्य पंडित जी ने सतत् श्रम किया। उसकी कल्पना आज का प्रबुद्ध पाठक नहीं कर सकता है। कितने ही दिन बाहर रहकर गाँव-गाँव घूमकर आचार्य महाराज से संबंधित सामग्री जुटाई थी। मुझे स्वयं उनके साथ कई जगह जाने का सौभाग्य इस हेतु प्राप्त हुआ। आचार्य महाराज ने ग्रंथ हेतु इच्छापूर्वक कभी अपने जीवन के बारे में नहीं बताया । यह तो पूज्य पंडितजी का चातुर्य हो कहा जाय कि उन्होंने किस तरह बद्धिमत्तापूर्वक उनसे चर्चा करते हुए आचार्य महाराज के जीवन संबंधी बातों का ज्ञान प्राप्त किया। यह शायद पूज्य पंडितजी के लिये ही संभव था क्योंकि आचार्य महाराज का भी पूज्य पंडितजी को विशेष आशीर्वाद प्राप्त था।
सन् १९५० में पूज्य पंडित जी के साथ बंबई जाते हुए गजपंथा में आचार्य महाराज के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पूज्य पंडितजी की आचार्य महाराज से चर्चा हो रही थी। प्रसंगवश आचार्य महाराज के दीक्षा गुरू पूज्य देवप्पा स्वामी एवं उनके समकालीन मुनिराजों के बारे में बता रहे थे। बोरगाँव के मुनि आदिसागर जी के बारे में एक तारा' द्वारा भजन गाने की बात पर से आचार्य महाराज के मुख पर हँसी आ गई व बोले कि बडे सरल तपस्वी साधुराज थे। मैं सामने ही बैठा अपनी डायरी में चर्चा लिख रहा था। मुझे यह लिखते देखकर महाराज सहसागंभीर मुद्रा में बोले-“यह सब व्यर्थ की बात है इन चर्चा से क्या लाभ? बाबा, तीर्थंकरों का चरित्र पढ़ो जिससे कल्याण होगा।' ___आचार्य महाराज के प्रति अगाध भक्ति एवं आत्मविश्वास से कि आचार्य महाराज के पुण्य जीवन का परिचय पाकर जगत् को सुख और शांति का प्रकाश एवं संयम - पथ पर चलने की प्रेरणा मिलेगी, पूज्य पंडितजी ने 'चारित्र चक्रवर्ती' ग्रंथ को लिखा। कितनी तन्मयता, श्रद्धा से उन्होंने यह ग्रंथ लिखा इसका आभास हमें हमारे स्व. भाई डॉ. सुशीलचंद जी दिवाकर द्वारा अपनी डायरी में दिनांक २३.२.५२ को लिखे नोट से होता है- “इन दिनों दादाजी आचार्य महाराज पर लिख रहे हैं। रात्रि में १२ बजे सोते हैं। सुबह ४ बजे उठते हैं। बड़ी तेजी से अध्ययनपूर्वक लिख रहे हैं | जब लिखने से थकते से
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