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ब्रह्माविलासम. काके दोऊ राग द्वेष ? जाके ये करम आठ, काके ये करम है आठ ? जाके रागद्वेख हैं। ताको नाव क्यों न लेहु ? भलें जानो। है तुम लेहु, लिखिहु वतावो लिखिवेको कहा लेख है? ॥ ताको कछु,
लच्छन है? देखि तूं विचक्षन है, कछू उन्मान कहो? मान कह्यो में , ख है । ए न कहो सुधि सुधि तो परैगी आगें आगे, जो कह है ई इनसों मिलाप को विशेख है ॥ ७० ॥
कुंडलिया भैया,भरम न भूलिये पुद्गलके परसंग। अपनो काज सवारिये, आय ज्ञानके अंग ॥ आय ज्ञानके अंग, आप दर्शन गहि लीजे। कीजे थिरताभाव, शुद्ध अनुभौरस पीजे॥ दीजे चरविधि दान, अहो शिव खेत वसया। तुम त्रिभुवनके राय,भरम जिन भूलहु भैया ॥१॥ हंसा हँस हँस आप तुझ, पूर्व संवारे फंद। तिहिं कुदावमें वंधि रहे, कैसे होहु सुछंद। कैसें होहु सुछंद, चंद जिम राहु गरासे। तिमर होय वल जोर, किरणकी प्रभुतानासे ।। स्वपरभेद भासै न देह जड़ लखि तजि संसा । तुम गुण पूरन परम सहज अवलोकहु हंसा ।। ७२ ।। भैया पुत्रकलन पुनि, मात तात परिवार । ए सब स्वारथके सगे, तू मनमांहि विचार ॥ तू मनमाहि विचार, धार निजरूप निरंजन ।
पर परणति सो भिन्न, सहज चेतनता रंजन ।। (१) दशविधि-ऐसा भी पाठ है। FROPEARWARDMREMEMARWARWAMANDEY
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