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पाप करमतैं इह गति परना । एते पर पता क्या करना ॥ ८ ॥ फिरहू परे नरकके माहीं । सो दुख कैसें वरने जाहीं ॥ क्षेत्र गंधर्ते नाक जु सरना । एते पर एता क्या करना ॥ ९ ॥ अग्निसमान भूमि जहँ कही । कितहू शील महा वन रही ॥ सूरी सेज छिनक नहिं टरना । एते पर एता क्या करना ॥१० परम अधर्मी देव कुमारा । छेदन भेदन करहिं अपारा ॥ तिनके बसतें नाहि उवरना । एते पर एता क्या करना ॥११ रंचक सुख जहँ जियको नाहीं । वसत याहि गति नाहिं अघाहीं देखत दुष्ट महा भय डरना । एते पर एता क्या करना ॥१२॥ पुण्ययोग भयो सुर अवतारा । फिरत फिरत इह जगतमझारा ॥ आवत काल देख थर हरना । एते पर एता क्या करना ॥ १३॥ सुरमंदिर अरु सुखसंयोगा । निशदिन सुख संपतिके भोगा ॥ छिनइक माहिं तहांते टरना । एते पर एता क्या करना ॥ १४ ॥ बहु जन्मांतर पुण्य कमाया । तव कहुं लही मनुप परजाया ॥ तामें लग्यो जरा गद मरना । एते पर एता क्या करना ॥१५॥ धन जोबन सबही ठकुराई । कर्म योगतैं नौनिधि पाई ॥ सो स्वपनांतरकासा बरना । एते पर एता क्या करना ॥१६ निशदिन विषय भोग लपटाना। समुझे नाहिं कौन गति जाना ॥ है छिन काल आयुको चरना । एते पर एता क्या करना ॥१७॥ इन विषयन केतो दुख दीनों । तबहूं तू तेही रस भीनों ॥ नेक विवेक हृदै नहिं धरना । एतेपर एता क्या करना ॥ १८॥ परसंगति केतो दुख पावै । तबहू तोकों लाज न आवै ॥ वासन संग नीर ज्यों जरना । एते पर एता क्या करना ||१९|| देव धर्म गुरु ग्रंथ जानें। स्वपरविवेक हुदै नहिं आनें ॥ क्यों होवै भवसागर
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तरना । एते पर एता क्या करना ॥ २०
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ब्रह्मविलास में
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