Book Title: Bramhavilas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay
View full book text
________________
Generationen
Reepavan/RepenSweenawRORPORAN फुटकर कविता.
२७५३ छप्पय छंदः .. शीश गर्व नहिं नम्यो, कान नहिं सुनै वैन संत ॥ नैन न निरखे साधु, वैनतें कहे न शिवपति ॥ करतं दान न दीन, हृदय कछु दया न कीनी ॥ पेट भरयो कर पाप, पीठ परतिय नहिं दीनी॥ चरन चले नहिं तीर्थ कहँ, तिहि शरीर कहा कीजिये ।। इमि कहैश्याल रेश्वान यह ! निंद निकृष्ट नलीजिये ॥१०॥ है
संवैया. (मात्रिक) मनवचकाय योग तीनहंसों, सब जीवनको रक्षक होय ॥ झूठे वचन न बोलै कवह, विना दिये कछु लेय न जोय ॥
शीलवतहिं पाल निरदूपन, दुविधि परिग्रह रंच न कोय ॥ र पंच महाव्रत ये जिन भापित, इहि मगचलै साधु है सोय ॥११॥
कवित्त. पेटहीके काज महाराजजूको छोड़ देत, पेटहीके काज झूठ जंपत वनायकें । पेटहीके काज राव रंकको वखान करै, पेटहीके Sकाज तिन्हें मेरु कह जायकें । पेटहीके काज पाप करत डरात हनाहिं, पेटहीके काज नीच नवे शिर नायके । पेटहीके काजको खुशामदी अनेक करे, ऐसे मूढ पेट भरै पंडित कहायकें ॥१२॥
छप्पय. वीतरागके विव सेव, समदृष्टी करई ॥ अटक द्रव्य चढाय, थाल भरि आगे धरई ।। पूजा पाठ प्रमान, जाप जप ध्यानहिं ध्यावै ॥ अचल अंग थिरभाव, शुद्ध आतम लौ लावै ॥
Proprepanaproonwanc0mpronocoopnacapasana
PACUNDINANDANANYAG T
p rom
o wnGORY
rans
(१) कहत. MODARPARPEnw/s/bB00000000000000000000

Page Navigation
1 ... 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312