Book Title: Bramhavilas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 297
________________ HuwenmarweppenepanwerPANWAROOPWARRIORUDAI परमात्मशतक. २९१६ warenwerendere केवल शुद्ध स्वभावमें, परम अतीन्द्रिय रूप ॥ सो अविनाशी आतमा, चिद्विलास चिद्रूप ॥९५ ॥3 जैसो शिवखेतहिं वसै, तैसो या तनमाहिं । निश्चय दृष्टि निहारिये, फेर रंच कहुं नाहिं ॥ ९६ ॥ चेतन कर्म उपाधि तज, रागद्वेपको संग॥ जे प्रगटै निज सम्पदा, शिव सुख होय अभंग॥९७॥ तू अनन्त सुखको धनी, सुखमय तोहि स्वभाव ॥ करते छिनमें प्रगट निज, होय वैठ शिवराव ॥९८॥ ज्ञान दिवाकर प्रगटते, दश दिशि होय प्रकाश ॥ ऐसी महिमा ब्रह्मकी, कहत भगवतीदास ॥ ९९ ॥ जुगल चन्दकी जे कला, अरु संयमके भेद ॥ सो संवत्सर जानिये, फाल्गुण तीज सुपेद ॥ १०॥ इति परमात्मशतकम् atutarta LawoonawasanapornwanapanasoNowumanasanvaadaosdase weredaranasanotararat है १०० (जुगलचन्दकी जे कला ) चन्द्रकी सोलह कलाके नो जुगल (दूने) बत्तीस और संयम (नियम) के भेदसत्रह अर्थात् १७३२ सम्बत्की फाल्गुण सुपेद (सुदी) तीन- “फाल्गुणशुक्ल । तृतीया सम्बत् १७३२ विक्रमाव्दको यह परमात्मशतक बनाया." ह , सिद्धपरमात्मा. २ मोक्षक्षेत्रमें. ३ सूर्य. MarwanamanPOORDARIANDERWORDAROOPAL

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