Book Title: Bramhavilas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay
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परमात्मशतकं. अहो! जगतके राय, मानहु. एती. वीनंती ॥ त्यागहु पर परजाय, काहे भूले भरममें ॥ ७६॥. एहो! चेतनराय, परसों प्रीति कहा करी.॥ जो नरकहिँ ले जाय, तिनही सो रांचे सदा ॥ ७७ ॥ तुम तौ परम सयान, परसों प्रीति कहा करी॥ किहिगुण भये अयान, मोहि वतावडं सांच तुम ॥७॥ कर्म शुभाशुभ दोय, तिनसों आपो मानिये ॥ कहहु मुक्ति क्यों होय, जो इन मारग अनुसरै ।। ७९ ॥ मायाहीके फन्द, अरुझे चेतनराय तुम ॥ कैसे होहु स्वछन्द, देखहु ज्ञान विचारके ॥ ८॥ एहो! परम सयान, . कौन सयानप तुम करी ॥. . काहे भये अयान, अपनी जो रिधि छांडिके ।। ८१॥ तीन लोकके नाथ, जगवासी तुम क्यों भये ॥ गहह ज्ञानको साथ, आवहु अपने थैल विर्षे ।। ८२॥ तुम पूनों सम चन्द, पूरण ज्योति सदा भरे ॥ परे पराये फन्द, चेतहु चेतनरायजू ॥८३॥ जानहिं गुण पर्याय, ऐसे चेतनराय हैं ॥ नैनन लेहु लखाय, एहो! सन्त सुजान नर ॥ ८४ ॥ सव कोउ करत किलोल, अपने अपने सहजमें ॥ भेद न लहत निठोले, भूलत मिथ्या भरममें ॥ ८५॥1
दोहा. आन न मानहि औरकी, आने उर जिनवैन । (८६) जो और ( अन्यधर्मवालों) की (आन) आज्ञा अथवा है
१ किसकारण. २ चतुरता. ३ मोक्षस्थल. ४ पूर्णिमा. ५ मूर्ख. MapoenpanwwwERappeoppOPOROPOPorope
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