Book Title: Bramhavilas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 292
________________ RapMROPE0900000RRDERWEAREAGOOD ब्रह्मविलासमें eniorrenaanaproprao-peoplRGDAROGRAMROGoooooooooooooooooooo बालापन गोकुलवसे, यौवन मनमथ राजः ॥ वृन्दावन पर रस रचे, द्वारे कुवजा काज ॥४६॥ दिना दशकके कारणे, सब सुख डारयो खोय ॥ विकल भयो संसारमें, ताहि मुक्ति क्यों कोय ॥४७॥ या माया सों राचिके, तुम जिन भूलहु. हंस ॥ संगति याकी त्यागके, चीन्हों अपनो अंस || ४८॥ जोगी न्यारो जोगते, करै जोग सव काज ॥ जोगें जुगत जाने सवै, सो जोगी शिवराज ॥ जाकी महिमा जगतमें, लोकालोक प्रकाश ॥ सो अविनाशी घट विषे, कीन्हों आय निवास ॥५०॥ केवल रूप स्वरूपमें, कर्म कलङ्क न होय ॥ सो अविनाशी आतमा, निजघट परगट होय ॥५१॥ धर्माधर्म स्वभाव निज, धरह ध्यान उरआन ॥ दर्शन ज्ञान चरित्रमें, केवल ब्रह्म प्रमान ॥५२॥ निज चन्दाकी चाँदनी, जिहि घटमें परकाश ॥ तिहिँ घटमें उद्योत है, होय तिमरको नाश ॥५३॥ है (१६) कृष्णजी बालापनमें गोकुलमें रहे. यौवनमें मथुरामें, और फिर कुब्जा परस्त्रीके रसमें मग्न हो उसके द्वारे वन्दावनमें रहे. इसी प्र-5 कार हे जीव ! तू बालापनमें तो 'गोकुल, अर्थात् इन्द्रियोंके कुल समूहमें है अथवा उनकी केलिमें रहा, और जवानीमें मनमथ अर्थात् कामदेवके रा-2 ज्यमें रहा अर्थात् वशमें रहा, और पीछे वृन्दावन जो कुटुम्ब समूह उसमें रचा. काहेके लिये, 'द्वारे कुवनाकाज, कहिये द्वारजो आस्रव उसके कवजेमें में आनेको अथवा द्वार जो मोक्षका उसको कुन्ज अर्थात् वन्द करनेकेलिये, ५ १ आत्मा. २ मन वचन कायके योग. ३ योग्य (उचित). ४ योग. (ध्यान). ५मोक्ष. rompRepop-PARDASARAMPRODARDCOREAWERS aboupronopowrahniprenavranocreativationawantpeterinarotidep2000 MAMMove

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