Book Title: Bramhavilas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 288
________________ www econociendo el ciocniranopres REPORPORAROOPOMORROWORDWONDE. # ૨૮૨ ब्रह्मविलासमे. . परमारथ परमें नहीं, परमारथ निज पास ॥ परमारथ परिचय विना, प्राणी रहै उदास ॥१६॥ परमारथ जानें परम, पर नहिं जाने भेद ॥ परमारथ निज परखियो, दर्शन ज्ञान अभेद ॥ १७ ॥ परमारथ निज जानियो, यहै परमको राज॥ परमारथ जाने नहीं, कही परम किहि काज ॥१८॥ आप पराये वश परे, आपा डारयो खोय ॥ आईं आप जाने नहीं, आप प्रगट क्यों होय ॥१९॥ सब सुख सांचेमें वसे, सांचो है सब झूठ॥ सांचो झूठ वहायके, चलो जगतसों रूठ ॥२०॥ जिनकी महिमा जेलखें, ते जिन होहिं निदान ।। जिनवानी यों कहत है, जिन जानहु कछु आन॥ २१॥ ध्यान धरो निजरूपको, ज्ञान माहिं उर आन ॥ तुम तो राजा जगतके, चेतहु विनती मान ॥ २२॥ चेतन रूप अनूप है, जो पहिचानें कोय ॥ तीन लोकके नाथकी, महिमा पावे सोय ॥ २३ ॥ जिन पूजहिं जिनवर नमहि, धरहिं सुथिरता ध्यान ॥ केवलपदमहिमा लखहिं, ते जिय सम्यकवान ॥२४॥ (२०) सम्पूर्ण सुख सचिमें अर्थात् सच्चे स्वरूपमें है,और सांचा अर्थात् है पौद्गलिकदेह रूपी सांचा बिलकुल झूठा अर्थात् अस्थिर है इसलिये, (सांचो झूठ ) इस देहरूपी झूठे, सांचेको त्याग करके, संसारसों (रूठ) रुष्ट होहै कर चल ‘अर्थात् मोक्ष प्राप्त कर. । १ दुखित.२ परन्तु.३ आतमा.४ आप अपनेंको नहीं जानता. ५ तीर्थंकर. ६ हृदयमें ज्ञान लाकरके. WORRRRRRRRROSORRIDORRORDARPAN FipapapesabrdstibrathabandbratanavAGDelivrindavaoramaraporeGESGROUGBOOK concerne e

Loading...

Page Navigation
1 ... 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312