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ब्रह्मविलासमे. . परमारथ परमें नहीं, परमारथ निज पास ॥ परमारथ परिचय विना, प्राणी रहै उदास ॥१६॥ परमारथ जानें परम, पर नहिं जाने भेद ॥ परमारथ निज परखियो, दर्शन ज्ञान अभेद ॥ १७ ॥ परमारथ निज जानियो, यहै परमको राज॥ परमारथ जाने नहीं, कही परम किहि काज ॥१८॥ आप पराये वश परे, आपा डारयो खोय ॥ आईं आप जाने नहीं, आप प्रगट क्यों होय ॥१९॥ सब सुख सांचेमें वसे, सांचो है सब झूठ॥ सांचो झूठ वहायके, चलो जगतसों रूठ ॥२०॥ जिनकी महिमा जेलखें, ते जिन होहिं निदान ।। जिनवानी यों कहत है, जिन जानहु कछु आन॥ २१॥ ध्यान धरो निजरूपको, ज्ञान माहिं उर आन ॥ तुम तो राजा जगतके, चेतहु विनती मान ॥ २२॥ चेतन रूप अनूप है, जो पहिचानें कोय ॥ तीन लोकके नाथकी, महिमा पावे सोय ॥ २३ ॥ जिन पूजहिं जिनवर नमहि, धरहिं सुथिरता ध्यान ॥
केवलपदमहिमा लखहिं, ते जिय सम्यकवान ॥२४॥ (२०) सम्पूर्ण सुख सचिमें अर्थात् सच्चे स्वरूपमें है,और सांचा अर्थात् है पौद्गलिकदेह रूपी सांचा बिलकुल झूठा अर्थात् अस्थिर है इसलिये, (सांचो
झूठ ) इस देहरूपी झूठे, सांचेको त्याग करके, संसारसों (रूठ) रुष्ट होहै कर चल ‘अर्थात् मोक्ष प्राप्त कर. । १ दुखित.२ परन्तु.३ आतमा.४ आप अपनेंको नहीं जानता. ५ तीर्थंकर. ६ हृदयमें
ज्ञान लाकरके. WORRRRRRRRROSORRIDORRORDARPAN
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