Book Title: Bramhavilas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 278
________________ Wel AAAAAAAAnam sover ordneteras eteren deres are site IRom/20PPOSWAARADARPARREARY છે ર૭ર ब्रह्मविलासमें राहु होय धन राशि जो, ए सव कहिये नीच ॥ परमारथ इनमें इतो, रहिये निज सुख वीच ॥ ५॥ इति ज्योतिपछन्द। . ___ अथ पद राग प्रभाती। साहिव जाके अमर है सेवक सब ताके ॥ दीप और पर दीपमें भर रहे सदाके, साहिव० ॥१॥ जामे तीर्थंकर भये चक्री वसु देवा ॥ काल अनन्तहु एकसे, घट वढ नहि टेवा, साहिव० ॥२॥. जाकी उत्पति नित्य है नित होय विनाशा॥ जीव विना पुद्गल विना सागर सम वासा, सहिब० ॥३॥ अर्थ कहो याको कहा विनती सौ बारा॥ नाव कह्योया पदविषै, तुम लेहु विचारा, साहिब० ॥४॥ पुनः कहा तनकसी आयु, मूरख तू नाचे ॥ सागरथितिधर खिर गये, तू कैसें वांचे, कहा० ॥१॥ देख सुपनकी संपदा, तू मानत सांच॥ वे जु नर्ककी आपदा, जर है को आंच, कहा० ॥२॥ धर्मकर्ममें को भलो परखो · मणि काचै ।। भैया आप निहारिये परसों मति मांचे, कहा०॥३॥ इति पद, अथ फुटकर कविता लिख्यते । कवित्त. तेरो ही स्वभाव चिनमूरति विराजत है, तेरो.ही स्वभाव सुख सागरमें लहिये । तेरों ही स्वभाव ज्ञान दरसन राजत है, तेरो ही PRORoomeOPA000-30MRPeopenwww were stereosprongerdorurteetarted HapnasaiJapaniaGhavantINDEntrevanavapurnwarGorbapradAGEME

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