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ब्रह्माविलासमें नाथ निवास सुक्ख । जय जय तिहुं भवननि हरन दुःख ॥ जय ह
जय श्री नेम कुमारचंद । जय जय अज्ञानतमके निकंद ॥१२॥ हूँ जय जय श्रीपार्श्व प्रसिद्ध नाम । जय जय भविदायक मुक्ति
धाम ॥ जय जय जिनवर श्रीवर्द्धमान । जय जय अनंत सुखके निधान ॥ १३ ॥ जय जय अतीत जिन भये जेह । जय जय सु अनागत है हैं तेह ॥ जय जय जिन है जे विद्यमान ॥ जय
जय तिन बंदों धर सु ध्यान ॥१४॥ जय जय जिनप्रतिमा जिन १ स्वरूप । जय जयसु अनंत चतुष्ट भूप ॥ जय जय मन वच निज सीसनाय । जय जय जय "भैया' नमै सुभाय ॥ १५॥
घत्ता. . जिनरूप निहारे आप विचारे, फेर न रंचक भेद कहै । 'भैया' इम वंदै ते चिरनंदै, सुख अनंत निजमाहिं लहै ।। १६॥
दोहा. रागभाव छूटयो नहीं, मिट्यो न अंतर दोख ॥ संतति वाढे बंधकी, होय कहांसों मोख ॥ १७ ॥
इति चतुर्विंशतितीर्थंकरजयमाला.
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PrapravenavransenavranaturanevanawranevanawwannapraavanawwanapUAGRA
अथ पंचेन्द्रियसंवाद लिख्यते।
दोहा. प्रथम प्रणमि जिनदेवको, बहुरि प्रणमि शिवराय । . साधु सकलके . चरनको, प्रणमों सीस नवाय ॥१॥
नमहुं जिनेश्वर वैनको, जगत जीव सुखकार ॥ ३. जस प्रसाद घटपट खुलै, लहिये बुद्धि अपार ॥२॥ nocop/oppppWDMERO/ARRIANWARRIORDEOS