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ब्रह्मविलासमें ईश्वर तौ निर्दोष है, करता भुक्ता नाहि ॥ ईश्वरको का कहै, ते मूरख जगमाहि ॥ १५ ॥ ईश्वर निर्मल मुकुरवत, तीनलोक आभास ॥ सुख सत्ता चैतन्यमय, निश्चय ज्ञान विलास ॥ १६ ॥ जांके गुन तामें बसै, नहीं औरमें होय ॥ सूधी दृष्टि निहारतें, दोष न लागै कोय ॥ १७ ॥ वीतरागवानी विमल, दोषरहित तिहुंकाल ॥ ताहि लखै नहिं मूढ जन, झूठे गुरुके बाल ॥ १८ ॥ गुरु अंधे शिष्य अंधकी, लखै न बाट कुवाट । विना चक्षु भटकत फिर, खुलै न हिये कपाट । १९ ।। जोलों मिथ्यादृष्टि है, तोलों . कर्ता होय ॥ सो हू भावित कर्मको, दर्वित करै न कोय ॥ २० दर्व कर्म प्रदल मयी, कर्चा पद्दल तास ज्ञानदृष्टिके होत ही, सूझे सब परकाश ॥ २१ ॥ जोलों जीव न जान ही, छहों कायके वीर ॥ तौलों रक्षा कौनकी, कर है साहस धीर ॥२२॥ जानत है सब जीवको, मानत आप समान ॥ रक्षा यातें करता है, सबमें दरसन ज्ञान॥ २३॥ अपने अपने सहजके, कर्ता हैं :सव दर्व ॥ यहै.धर्मको मूल है, समझ लेहु . जिय सर्व ॥ २४ ॥ 'भैया, बात अपार है, कहै कहालों कोय ॥.
थोरेहीमें; समझियो, ज्ञानवंत, जो होय.॥२५॥ (१) स्वभावके. RRRRRRRRRROSonawanaphonePORT
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