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ब्रह्मविलासमें जो पालक सव सृष्टिको, विष्णु नाम भूपाल ॥
सो मारयो इक बानते, प्रान तजे ततकाल ॥२०॥ महादेव वर दैत्यको, दीनों होय दयाल ॥ ___ आपन पुन भाजत फिरचो, राख लेहु गोपाल ॥ २१ ॥ जिनको जग ईश्वर कहै, ते तो ईश्वर नाहि ॥
ये हू ईश्वर ध्यावते, सो ईश्वर घट माहिं ॥ २२॥ . ईश्वर सो ही आतमा, जाति एक है तंत॥
कर्म रहित ईश्वर भये, कर्म सहित जगजंत ॥ २३ ॥ जो गुण आतम द्रव्यके, सोगुण आतममाहि ॥
जड़के जड़में जनिये, यामै तो भ्रम नाहिं ॥ २४ ॥ दर्शन आदि अनंत गुण, जीव धरै तिहुं काल ॥ ___ वर्णादिक पुद्गल धरै, प्रगट दुहूंकी चाल ॥ २५ ॥ हूँ सत्यारथ पथ छोड़के, लगै मृषाकी ओर ॥
ते मूरख संसारमें, लहै न भवको छोर ॥ २६ ॥ 'भैया'ईश्वर जो लखै, सोजिय ईश्वर होय ॥ यो देख्यो सर्वज्ञने, यामें फेर न कोय ॥ २७ ॥
इति ईश्वरनिर्णयपचीसी ।
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अथ कोअकापचीसी लिख्यते।
दोहा. है कर्मनको कर्त्ता नहीं, धरता सुद्ध सुभाय ।।
ता ईश्वरके चरन को, वंदों सीस नवाय ॥१॥ जो ईश्वर करता कहैं, भुक्ता कहिये कौन ॥ ए जो करता सो भोगता, यहै न्यायको भौन ॥ २॥ POROPoopPRODAPAROOPowerPeopenia