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ब्रह्मविलासमें कौन जीव जावेंगे। लेक हाथ शस्त्र जेई छेदत. पराये पान, ते नहीं पिशाच कहो और को कहावेंगे? ॥ ऐसे दुष्ट पापी जे संतापी पर जीवनके, ते तो सुख संपतिसों कैसे के अघावेंगे॥ अहो ज्ञानवंत संत तंतकै विचार देखो, बोवें जे बंदूर ते तो आम कैसे खांवेगे? ॥८॥
कुंडलिया। सुख जो तुमको चाहिये, सो सुख सबको चाह । खान पान जीवत रहै, धन सनेह निरवाह ॥ धन सनेह निरवाह, दाह दुख काहि न व्यापै । थावर जंगम जीव, मरन भय धार जु कांपै ।।
आपै देह विचार, होयकै आपहि सनमुख । 'भैया' घटपट खोल, बोल कहि कौन चहै सुख ॥९॥
कवित्त. 6 वीतराग वानीकी न जानी बात प्रानी मूढ, ठानी से नि
अनेक आपनी हठाहठी । कर्मनके बंध कौन अन्ध कडू सूझै तोहि, रागदोष पर्णितसों होत जो गठागठी ॥ आतमाके जीतकी ६ न रीत कहू जानै रंच, ग्रन्थनके पाठ तू करै कहा पठापठी। मोहको न कियो नाश सम्यक न लियो भास, सूत न कपास
करै कोरीसों लठालठी ॥१०॥ ए हाथी घोरे पालकी नगारे रथ नालकी न, चकचोल चालकी न चढि रीझियतु है । स्वेतपट चालंकी न मोती मन मालकी है न, देख युति भाल की न मान कीजियतु है ॥ शैल बाग ताल, कीन जल जंतु जालकीन, दया वृद्ध वालकी न दंड दीजियतु है।" oh (१) कपड़ा बुननेवाळेसों. &00000000RRORIODSORPORPOWDMRPos
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