Book Title: Bramhavilas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay
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narenAmWARondsRG/DP/npnewRDPR पंचेंद्रियसंवाद.
२४१ है सुख विलसै संसारना, ते सहु मुझ परसादैरे ॥ नाना वृक्ष सुगंधता, नाक सकल आस्वादैरे, नाक कहै ॥२५॥
तीर्थकर त्रिभुवन धणी, तेहना तनमा वासोरे ॥ है परम सुगंधो घणी लस, ते सुख नाक निवासोरे, नाक कहै॥२६ ___ और सुगंधो अनेक छ, ते सव नाकज जाणैरे ॥ आनंदमां सुख भोगवे, 'भैया' एम वखाणैरे, नाक कहै ॥२७॥ है
दोहा. कान कह रे नाक सुन, तू कहा कर गुमान ॥
जो चाकर आगे चलें, तो नहिं भूप समान ॥२८॥ नाक मुरनि पानी झरे, बहै सलेम अपार ॥ __ गूपनि कर पूरित रहे, लाजै नहीं गवार ॥ २९ ॥ तेरी छींक सुनै जिते, करै न उत्तम काज ॥
मूदै तुह दुर्गधमें, तऊ न आवै लाज ॥ ३० ॥ वृपभ ऊंट नारी निरख, और जीव जग माहिं ॥
जित तित तोको छेदिये, तोऊ लजानो नाहिं ॥ ३१॥ कान कहे जिन वैनको, सुनै सदाचित लाय ॥
जस प्रसाद इह जीवको, सम्यग्दर्शन थाय ॥ ३२॥ कानन कुंडल झलकता, मणि मुक्का फल सार ।
जगमग जगमग है रहै, देखै सव संसार ॥ ३३ ॥ सातों सुरको गायबो, अद्भुत सुखमय स्वाद ॥
इन कानन कर परखिये, मीठे मीठे नाद ॥ ३४॥ कानन सुन श्रावक भये, कानन सुनि मुनिराज ॥ ___ कान सुनहि गुण द्रव्यके, कान वड़े शिरताज ॥ ३५ ॥ Tranowamp OnePOPPERSOppoporonpropers
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