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चचदहगुणस्थानवर्त्ति जीवसंख्यावर्णन.
जिहँ चलवो जिह पंथको; सो ढूंढै बहु साथ ॥ तैसे पंथिक मोक्षके, ढूंढ लेहिं जिननाथ ॥ २ ॥ चौपाई.
चौदह गुण थानक परमान । जियकी संख्या कहीं बखान ॥ इहि मगच मुकत सो होय । रहे अर्द्ध- पुद्गललों कोय ॥ ३ ॥ प्रथम मिथ्यात्व नाम गुणथान । जीव अनंतानंत प्रमान ॥ तिनके पंच भेद विस्तार । वरनों जिन आगम अनुसार ५ ॥ एक पक्ष जो गहिकै रहें । दूजी नय नाहीं सरद हैं || वो: मिथ्याती मूरख जीव । ज्ञानहीन ते कहें सदीव ॥ ५ ॥ जिन आगमके शब्द उथाप । थाप निजमति वचन अलाप ॥ सुजस हेत गुरुतर मनधरै । सो विपरीती भवदुख भरे ॥६॥ देव कुदेव न जाने भेव । सुगुरु कुगुरुकी एकहि सेव ॥ नमै भगतिसों विना विवक । विनय मिथ्याती जीव अनेक ॥७॥ भांति भांतिके विकलप गहै । जीव तत्त्व नाहीं सरद है ॥ शून्य हिये डोलै हैरान । सो मिथ्याती संशयवान ॥ ८ ॥ गंहल रूप वरतै परिणाम । दुखित महान न पावै धाम ॥ जाको सुरति होय नहिं रंच । ज्ञानहीन मिथ्याती पंच ॥ ९ ॥ दोहा.
इनहि पंच मिथ्यात्व वश, जीव वसै जगमाहिं ॥
इनहिं त्याग ऊपर चढे, ते शिवपथिक कहाहिं ॥ १० ॥
सासादन गुन धानसों, अरु अयोग परजंत ॥ उत्कृष्टी संख्या कहूं, भाखी श्रीभगवन्त ॥ ११ ॥ चौपाई.
सासादन गुणथानक नाम । बावन कोटि जीव तिहँ ठाम ॥
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