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ब्रह्मविलासमें श्रवण शब्दके ग्रहणको, इष्ट अनिष्ट निवास ॥ मुख तो सोही प्रगट है, सुखदुख चाखे तास ॥७॥ येही चारों मुख बने, चहुं मुख लेय अहार ।। तातें ब्रह्मा देव यह, यही सृष्टि करतार ॥ ८॥ हृदय कमलपर वैठिके, करत विविधि परिणाम ॥ कर्त्ता नाही कर्मको, ब्रह्मा आतम राम.॥९॥ चार वेद ब्रह्मा रचे, इनहू तजे कपाय || शुद्ध अवस्था ये भये, यह विन शुद्धि कहाय ॥१०॥ नाना रूप रचें नये, ब्रह्मा विदित कहान । नाम कर्मजिय संगलै, करत अनेक विनान ॥११॥ ब्रह्मा सोई ब्रह्म है, यामें फेर न रंच ॥ रचना सव याकी करी, ताते कह्यो विरंचे ॥१२॥ जेते लक्षण ब्रह्मके, ते ते ब्रह्मा माहि ॥ ब्रह्मा ब्रह्म न अंतरो, यों निश्चय ठहराहि ॥१३॥ जो जानै गुण ब्रह्मके, सो जानै यह बात ॥ 'भैया'थोरे कथनमें, कही कथा विख्यात ॥ १४ ॥
इति ब्रह्मा ब्रह्म निर्णय चतुर्दशी.
gestaranno sottoterreostalo otestosteronto Tramon
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अथ अनित्य पचीसिका लिख्यते।
कवित्त. है नर लोकनके ईश नाग लोकनके ईश, सुरलोकहूके ईश,
जाको ध्यान ध्यावही । नाय नाय शीस जाहि वंदत मुनीश नित, अतिशै चौतीस ओ अनंत गुण गावही ॥ कौन कर जाकी
१(ब्रह्मा) (२) जीव (३) ब्रह्मा। . • meanpanPROGRAMMARRIORPORAParmarwana