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ब्रह्मा ब्रह्म निर्णय चतुर्दशी. दर्वित गुण समकितके जेह | ग्रंथनमें बहु बरने तेह || तिहँ माफिक नाही जिहँ चाल । ते मिथ्याती जीव त्रिकाल ||२१|| भावित समकित जीव सुभाय । सो निहचै जानै मुनिराय ॥ कै जाने जो वेदे जीव । ऐसें गणधर कहें सदीव ॥ २२ ॥ दोहा. इहविधि पन्द्रह पात्रके, गुण निरखै गुणवंत ॥ यथा अवस्थित जानके, धारहिं हिरदै संत ॥ २३ ॥ निज स्वभाव रसलीन जे, ते पहुँचे शिव ओर । मिथ्याती भटकत फिरें, विनवें दास किशोर ॥ २४ ॥ इति पन्द्रह पात्रकी चौपई.
अथ ब्रह्मा ब्रह्म निर्णय चतुर्दशी लिख्यतेः दोहा.
असिआउसा जु पंचपद, बंदों शीस नवाय ॥ कछु ब्रह्मा अरु ब्रह्मकी, कहूं कथा गुणगाय ॥ १ ॥ ब्रह्मा ब्रह्मा सब कहै, ब्रह्मा और न कोय | ज्ञान दृष्टि घर देखिये, यह जिय ब्रह्मा होय ॥ २ ॥ ब्रह्मा के मुखचार हैं, याहूके सुख चार ॥ आँख नाक रसना श्रवण, देखहु हिये विचार ॥ ३ ॥ आँख रूपको देखकर, ग्रहण करै निरधार ॥ रागीपी आतमा, सबको स्वादनहार ॥ ४ ॥ . नाक सुवास कुवासको, जानत है सब भेद ॥ राचै विरचे आतमा, यों मुखबोलें वेद ॥ ५ ॥ रसना पटरंस भुंजती, परी रहै मुख मांहि ॥ रीझे खीजै आतमा, मुखयातें ठहराहिं ॥ ६ ॥
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